परमात्मा क्यों भेजता है आत्मा को संसार में?

 परमात्मा क्यों भेजता है आत्मा को संसार में?   यह प्रश्न युगों से ऋषियों, भक्तों और साधकों के हृदय में उठता आया है। इसका उत्तर केवल तर्क से नहीं, भावना और अनुभव से समझा जा सकता है। आइए इसे एक कहानी और भावना के माध्यम से समझते हैं... 🌌 प्रारंभ: परमात्मा और आत्मा का संवाद बहुत समय पहले की बात है। जब न कोई पृथ्वी थी, न आकाश। न समय था, न कोई देह। केवल एक था— परमात्मा । शुद्ध प्रेम, प्रकाश और शांति का अनंत महासागर। उस अनंत ज्योति के भीतर असंख्य आत्माएँ थीं—चमकती हुई चिंगारियाँ, जो उसी परमात्मा की ही अंश थीं। वे आत्माएँ आनंद में डूबी रहतीं, पूर्णता का अनुभव करतीं। फिर एक दिन, एक छोटी सी आत्मा ने परमात्मा से पूछा: "प्रभु, आप तो सब कुछ हैं। लेकिन मैं खुद को जानना चाहती हूं। मैं यह जानना चाहती हूं कि मैं कौन हूं। क्या मैं भी आप जैसी हूं?" परमात्मा मुस्कुराए। उन्होंने कहा: "प्यारी आत्मा, तुम वास्तव में मुझ जैसी ही हो। लेकिन केवल मेरे पास रहकर तुम अपने स्वरूप को पूर्ण रूप से अनुभव नहीं कर सकती। जैसे बिना अंधकार के प्रकाश का अनुभव नहीं होता, वैसे ही बिना अनुभव के ज्ञा...

Question & Ans.

Q. क्या खाना खाने के तुरंत बाद पद्मासना लगा सकते हैं ? 

Ans: खाना खाने के तुरंत बाद पद्मासन (या कोई भी अन्य ध्यान मुद्रा) लगाने से बचना चाहिए। भोजन के तुरंत बाद शरीर पाचन प्रक्रिया में लगा होता है, और इस दौरान शरीर को अधिक ऊर्जा और रक्त की आवश्यकता होती है। पद्मासन में बैठने से पाचन प्रक्रिया धीमी हो सकती है, जिससे अपच, गैस, और पेट संबंधी अन्य समस्याएं हो सकती हैं।

खाने के तुरंत बाद क्या करें ?

खाने के तुरंत बाद कुछ सरल और आरामदायक गतिविधियों की सलाह दी जाती है:

  1. वज्रासन: खाना खाने के तुरंत बाद वज्रासन लगाना सुरक्षित और लाभकारी होता है। यह एकमात्र ऐसा आसन है जिसे खाने के बाद किया जा सकता है। वज्रासन पाचन तंत्र को सक्रिय करता है और पाचन में मदद करता है।
  2. धीरे-धीरे टहलना: भोजन के बाद हल्के टहलने से पाचन प्रक्रिया तेज होती है और यह पेट की समस्याओं को कम करता है।

पद्मासन कब करें?

पद्मासन को भोजन करने के कम से कम 2-3 घंटे बाद करना चाहिए, ताकि आपका भोजन अच्छी तरह से पच जाए और आपका शरीर ध्यान के लिए तैयार हो।

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Q. ध्यान में मुझे मुझे पिला और हरा रंग दिखता है
Ans:ध्यान में पीला और हरा रंग दिखाई देना आपके आंतरिक ऊर्जा और चक्रों से संबंधित हो सकता है। विभिन्न रंगों का ध्यान के दौरान दिखाई देना एक सामान्य आध्यात्मिक अनुभव है, और प्रत्येक रंग का विशेष अर्थ हो सकता है:

1. पीला रंग:

  • पीला रंग आमतौर पर मणिपुर चक्र (Solar Plexus Chakra) से जुड़ा होता है, जो आपके आत्मविश्वास, शक्ति, और आत्म-सम्मान का प्रतीक है। यह चक्र आपके पेट के क्षेत्र में स्थित होता है।
  • ध्यान में पीला रंग दिखाई देने का मतलब हो सकता है कि आप अपनी आत्मशक्ति, इच्छा-शक्ति और व्यक्तिगत विकास पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। यह रंग आंतरिक स्थिरता और मानसिक स्पष्टता का भी प्रतीक है।

2. हरा रंग:

  • हरा रंग आमतौर पर अनाहत चक्र (Heart Chakra) से जुड़ा होता है, जो प्रेम, करुणा, और संतुलन का प्रतीक है। यह चक्र आपके हृदय के क्षेत्र में स्थित होता है।
  • ध्यान में हरा रंग दिखाई देना आपके जीवन में भावनात्मक संतुलन, प्रेम और शांति का संकेत हो सकता है। यह आपकी आत्मा और शरीर के बीच के संबंधों को भी मजबूत कर सकता है, और यह बताता है कि आप दूसरों के प्रति अधिक प्रेमपूर्ण और दयालु हो रहे हैं।

क्या करें:

  • इन रंगों के अनुभव को सहजता से स्वीकार करें। इसका मतलब यह है कि आपके चक्र सक्रिय हो रहे हैं और आप अपने आध्यात्मिक विकास के रास्ते पर हैं।
  • यदि आप इन चक्रों पर अधिक काम करना चाहते हैं, तो मणिपुर और अनाहत चक्र के लिए विशेष ध्यान और प्राणायाम तकनीकों का अभ्यास कर सकते हैं, जैसे कि मंत्र जाप और प्राणायाम।
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Date: 15-10-2024

Q.प्रेगनेंसी के  टाइम चक्र ध्यान रोकना होता है या नहीं ?

Ans. प्रेगनेंसी के दौरान ध्यान रखना बहुत फायदेमंद हो सकता है, लेकिन कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है।

  1. सकारात्मकता: ध्यान करने से मानसिक शांति और सकारात्मकता बढ़ती है, जो प्रेगनेंसी के दौरान बहुत महत्वपूर्ण है।

  2. शारीरिक स्वास्थ्य: अगर आप ध्यान कर रहे हैं तो यह आपको शारीरिक और मानसिक रूप से संतुलित रख सकता है।

  3. सुरक्षा: ध्यान के दौरान कोई भी शारीरिक गतिविधि, जैसे योग आसनों में सावधानी बरतें। कुछ आसनों से बचना बेहतर हो सकता है, खासकर पहले और तीसरे तिमाही में।

  4. परामर्श: हमेशा अपने डॉक्टर से सलाह लें, खासकर अगर आपको कोई स्वास्थ्य समस्या है।

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Q. क्या पूजा करने से अनुभव होते है  कुण्डलनी शक्ति जागृत होने से पागल हो जाते है ?

Ans. पूजा करने से कई सकारात्मक अनुभव हो सकते हैं, जैसे:
  1. आंतरिक शांति: पूजा करने से मन में शांति और संतुलन की अनुभूति होती है, जिससे तनाव कम होता है।

  2. धार्मिकता और आध्यात्मिकता: यह व्यक्ति को अपने धर्म और आध्यात्मिकता के करीब लाता है, जिससे आत्मा को सुकून मिलता है।

  3. सकारात्मकता: पूजा करने से सकारात्मक ऊर्जा मिलती है, जो दिनभर की गतिविधियों में मददगार हो सकती है।

  4. ध्यान और एकाग्रता: पूजा एक तरह का ध्यान भी है, जो एकाग्रता को बढ़ाता है और मानसिक स्पष्टता देता है।

  5. समुदाय और एकता: सामूहिक पूजा से समाज और परिवार में एकता और सहयोग की भावना बढ़ती है।

  6. आभार और प्रार्थना: पूजा के दौरान आभार व्यक्त करने से जीवन में सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित होता है।

कुण्डलिनी शक्ति जागृत होने के दौरान कुछ लोगों को असंतुलन या मानसिक परेशानियों का अनुभव हो सकता है, लेकिन यह जरूरी नहीं है कि हर किसी के साथ ऐसा हो।

  1. असंतुलन: यदि कुण्डलिनी शक्ति बहुत तेजी से जागृत होती है और व्यक्ति की मानसिक या भावनात्मक स्थिति स्थिर नहीं है, तो यह चिंता, भ्रम या अन्य समस्याएँ उत्पन्न कर सकती है।

  2. सतर्कता: कुण्डलिनी योग या ध्यान के अभ्यास करते समय यह जरूरी है कि व्यक्ति अनुभवी गुरु की मार्गदर्शन में रहे, ताकि वह सही दिशा में आगे बढ़ सके।

  3. आध्यात्मिक अनुभव: कुछ लोगों को गहन आध्यात्मिक अनुभव होते हैं, जो असामान्य लग सकते हैं, लेकिन यह हमेशा नकारात्मक नहीं होते।

  4. समय और धैर्य: कुण्डलिनी जागरण एक धीमी और संतुलित प्रक्रिया होनी चाहिए। धैर्य और नियमित अभ्यास से व्यक्ति अधिक सुरक्षित अनुभव कर सकता है।

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Q. ध्यान का मकसद क्या निरंकार को पाना है या निरंकार के  परे भी कुछ है ? 

Ans.ध्यान का मकसद विभिन्न परंपराओं और व्यक्तिगत अनुभवों के आधार पर भिन्न हो सकता है। यहाँ कुछ प्रमुख दृष्टिकोण दिए गए हैं:
  1. निरंकार की प्राप्ति: कई आध्यात्मिक परंपराओं में ध्यान का मुख्य उद्देश्य निरंकार (बिना रूप के, निराकार) को समझना और अनुभव करना होता है। यह आत्मा और ब्रह्म के एकत्व का अनुभव कराने में मदद करता है।

  2. आंतरिक शांति: ध्यान का एक प्रमुख उद्देश्य मानसिक शांति और स्थिरता प्राप्त करना है। यह तनाव कम करने, एकाग्रता बढ़ाने और आत्मज्ञान की ओर ले जाने में मदद करता है।

  3. व्यक्तिगत विकास: ध्यान के माध्यम से व्यक्ति अपनी आंतरिक क्षमताओं को विकसित कर सकता है, जैसे कि सहानुभूति, करुणा और समझ।

  4. निर्गुण और सगुण का अनुभव: कुछ शिक्षाएँ निरंकार के साथ-साथ सगुण (रूप वाले ईश्वर) की भक्ति को भी महत्व देती हैं। ध्यान के माध्यम से दोनों के बीच संतुलन बनाना संभव हो सकता है।

  5. आध्यात्मिक सफर: ध्यान एक यात्रा है, जिसमें व्यक्ति अपने आप को और अपनी आत्मा को गहराई से जानने की कोशिश करता है। यह न केवल निरंकार को पाने की दिशा में बल्कि आत्म-साक्षात्कार की ओर भी ले जाता है।

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Q.कुंडलिनी जागृत होणे पर विविध रूप धारण करती है. शिव स्वरूप प्रकाश मान हो जाती है . पाहिले स्वच्छ प्रकाश,नील रंग मे बाद में सोनेरी (गोल्डन) रंग पुरा शरीर मे भर जाता हैं. मगर यह कभी कभी होता हैं

Ans:कुण्डलिनी जागरण के दौरान अनुभव किए जाने वाले भिन्न-भिन्न रूप और रंग, व्यक्ति के आध्यात्मिक विकास और अनुभव पर निर्भर करते हैं।
  1. प्रकाश का अनुभव: जब कुण्डलिनी जागृत होती है, तो कई लोग स्वच्छ और दिव्य प्रकाश का अनुभव करते हैं, जिसे आत्मा की शुद्धता का प्रतीक माना जाता है।

  2. नील रंग: नील रंग अक्सर शांति और गहराई का प्रतीक होता है। यह ध्यान की गहरी अवस्था या शांति का अनुभव हो सकता है।

  3. गोल्डन रंग: सोनेरी रंग का अनुभव आमतौर पर उच्च आध्यात्मिक स्थिति और दिव्यता का प्रतीक होता है। इसे आत्मिक जागरण और ऊर्जावान अनुभव से जोड़ा जा सकता है।

  4. व्यक्तिगत भिन्नता: यह अनुभव हर व्यक्ति के लिए अलग हो सकते हैं। कुछ लोग इन रंगों और रूपों का अनुभव कर सकते हैं, जबकि दूसरों को अलग अनुभव हो सकता है।

  5. मार्गदर्शन: ऐसे अनुभवों को समझने और संभालने के लिए मार्गदर्शक या गुरु का होना महत्वपूर्ण है, ताकि व्यक्ति अपने अनुभव को सही ढंग से समझ सके और संतुलित रह सके।

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Date: 16-10-2024


Q. Pink colour without dhyan ke dikhai deta hai ?



Ans. ध्यान के बिना भी कभी-कभी रंगों का दिखाई देना सामान्य हो सकता है। ऐसा तब होता है जब हमारा मस्तिष्क विभिन्न कारणों से संवेदनशील होता है, जैसे थकान, तनाव, या मस्तिष्क के न्यूरोलॉजिकल गतिविधियों के कारण।

पिंक रंग या अन्य रंगों का दिखाई देना निम्नलिखित कारणों से हो सकता है:

  1. आँखों की थकान: ज्यादा समय स्क्रीन के सामने बिताने से आँखों पर दबाव बन सकता है, जिससे हल्के रंग दिख सकते हैं।
  2. माइग्रेन या सिरदर्द: कुछ लोगों को सिरदर्द के दौरान चमकते हुए रंग या रोशनी दिखाई देती है।
  3. ध्यान और आंतरिक जागरूकता: अगर आप ध्यान करते हैं, तो यह संभव है कि आपकी आंतरिक ऊर्जा का प्रभाव हो, जिससे ये रंग दिखाई दे सकते हैं।
  4. दिमागी गतिविधि: नींद और जागने की स्थिति के बीच मस्तिष्क में कुछ अवचेतन क्रियाएं हो सकती हैं जो इन रंगों के दिखने का कारण बनती हैं।
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Q.  क्या सहस्त्रद चक्र की ऊर्जा बीमार के देती है कृपया मार्गदर्शन करे

Ans:हस्त्रार चक्र (Crown Chakra) का ऊर्जा से जुड़ा होना आमतौर पर जागरूकता और आध्यात्मिक जागृति से संबंध रखता है, और इसे बीमारी का कारण नहीं माना जाता। लेकिन अगर सहस्त्रार चक्र की ऊर्जा को संतुलित या सही ढंग से नियंत्रित नहीं किया जाता, तो मानसिक या शारीरिक असंतुलन महसूस हो सकता है
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Q. 64 Joganiya Ki Sawari kya hoti hai aur kaise Aati Hai

Ans. 64 जोगणियों की अवधारणा तांत्रिक और देवी साधना परंपराओं में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। यह 64 शक्तिशाली देवियों का समूह है, जिन्हें "जोगणियाँ" कहा जाता है, और यह साधक की साधना में प्रकट हो सकती हैं।

64 जोगणियों की सवारी का अर्थ होता है इन देवियों का साधक पर नियंत्रण या उनके साथ एक प्रकार की ऊर्जा का जुड़ाव, जो साधक के जीवन में गहरे आध्यात्मिक अनुभव ला सकता है। इसे कुछ लोग जागृति या शक्ति की अनुभूति के रूप में देखते हैं, जहां साधक को 64 जोगणियों की उपस्थिति महसूस होती है।

64 जोगणियाँ कौन होती हैं?

64 जोगणियाँ (योगिनियाँ) तंत्र और शाक्त परंपरा में महत्वपूर्ण हैं। इनका वर्णन प्राचीन ग्रंथों और तांत्रिक साहित्य में मिलता है। ये देवी विभिन्न रूपों में होती हैं और विभिन्न शक्तियों का प्रतिनिधित्व करती हैं। तांत्रिक साधक इनके माध्यम से शक्ति और सिद्धियों की प्राप्ति करते हैं।

64 जोगणियों की सवारी कैसे आती है?

64 जोगणियों की सवारी साधक पर तब आती है जब वह गहन तांत्रिक साधना या देवी उपासना करता है। इसे साधक की साधना के उच्चतम स्तर पर माना जाता है, जहां वह 64 जोगणियों की शक्ति का अनुभव करता है। इसके लिए कुछ विशेष साधनाएँ और विधियां हैं:

  1. तांत्रिक साधना: साधक गहरे तांत्रिक अनुष्ठानों और मंत्रों का अभ्यास करता है। यह साधना आमतौर पर गुरु के मार्गदर्शन में की जाती है।
  2. देवी की उपासना: जोगणियों को प्रसन्न करने के लिए साधक विशेष देवी की उपासना करता है। यह पूजा दुर्गा, काली, या अन्य शक्तिशाली देवियों के रूप में की जा सकती है।
  3. मंत्र जाप: 64 जोगणियों से संबंधित विशेष मंत्रों का जाप साधक को उनकी कृपा और शक्ति प्राप्त करने में मदद करता है।
  4. तांत्रिक यज्ञ: तंत्र में कुछ यज्ञ और अनुष्ठान होते हैं, जो जोगणियों की कृपा प्राप्त करने के लिए किए जाते हैं।
  5. ध्यान और मानसिक स्थिति: साधक को ध्यान में एक उच्च मानसिक स्थिति प्राप्त करनी होती है, जहां वह अपने आप को 64 जोगणियों के प्रति समर्पित करता है।

64 जोगणियों की सवारी के संकेत

जब 64 जोगणियों की सवारी आती है, तो साधक निम्नलिखित अनुभव कर सकता है:

  1. अत्यधिक ऊर्जा: साधक के शरीर और मन में अत्यधिक ऊर्जा का प्रवाह होता है।
  2. अलौकिक अनुभव: साधक को अद्वितीय दृश्य या आवाजें महसूस हो सकती हैं, जैसे कि देवियों का दर्शन या उनकी उपस्थिति।
  3. कंपन या आघात: शारीरिक रूप से भी साधक को ऊर्जा का अनुभव कंपन या किसी प्रकार के आघात के रूप में हो सकता है।
  4. अनुभूत शक्तियाँ: साधक को विशेष शक्तियों या सिद्धियों का अनुभव हो सकता है, जैसे कि कोई कार्य करने में अकल्पनीय सफलता या किसी भविष्यवाणी की क्षमता।

64 जोगणियों की साधना में सावधानियाँ

64 जोगणियों की साधना बहुत ही शक्तिशाली और गंभीर साधना मानी जाती है, इसलिए इसे बिना उचित ज्ञान और गुरु के मार्गदर्शन के नहीं किया जाना चाहिए। साधना में लापरवाही या गलत विधियों का उपयोग साधक के लिए हानिकारक हो सकता है।

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Q. kalyug me jada pooja path karne se insaan jada parishan kiyo rhta hai ?

Ans: कभी-कभी हम यह मान लेते हैं कि केवल पूजा-पाठ करने से हमारी सारी परेशानियाँ खत्म हो जाएंगी। लेकिन कर्म और प्रारब्ध का अपना प्रभाव होता है। हमारे पिछले कर्मों का फल भी हमारे जीवन में बाधाएँ और परेशानियाँ ला सकता है, और केवल पूजा करने से वो सब तुरंत हल नहीं होते। पूजा का उद्देश्य कर्मों के प्रभाव को समझकर उन्हें धीरे-धीरे हल करना होता है, न कि उनसे बचने की कोशिश करना।
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Q. Kya khana khane ke turant bad humse Dhyan Laga sakte hain

Ans: खाना खाने के तुरंत बाद ध्यान लगाने की सलाह नहीं दी जाती, क्योंकि खाने के बाद शरीर का अधिकांश ऊर्जा पाचन प्रक्रिया में चली जाती है। ध्यान में गहराई से जाने के लिए मस्तिष्क को पूरी तरह शांत और ऊर्जा से भरा होना चाहिए, लेकिन खाना खाने के बाद यह संभव नहीं होता।

आम तौर पर खाने और ध्यान के बीच कम से कम 1-2 घंटे का अंतर रखना अच्छा माना जाता है ताकि पाचन प्रक्रिया थोड़ी पूरी हो जाए और शरीर आराम की स्थिति में आ सके। इससे ध्यान में भी बेहतर एकाग्रता और शांति मिलती है।

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Q. pranam guruji me urja aagya chakra se uper nhi ja rahi h . or pura din raat mere aagya chakra p jalan ho rahi h .phle mitha mitha sa dard hota tha .ab jalan ho rahi h . or meri gardan jakadi hui rahti h . m gardan ko free nhi guma raha hu . kuch smj nhi aa raha h krupa kar k margdarshan kre mera ?

Ans: आज्ञा चक्र (Third Eye Chakra) पर जलन और गर्दन में जकड़न होना ऊर्जा असंतुलन का संकेत हो सकता है। यह हो सकता है कि आपकी ऊर्जा इस चक्र पर अत्यधिक केंद्रित हो गई हो, जिससे वहाँ अत्यधिक सक्रियता या बाधा उत्पन्न हो रही हो। इसे संतुलित करने के लिए कुछ उपाय और सुझाव दिए जा रहे हैं:

1. ग्राउंडिंग (जमीनी संपर्क):

आज्ञा चक्र की ऊर्जा को संतुलित करने के लिए ग्राउंडिंग महत्वपूर्ण है। कभी-कभी उच्चतर चक्रों (जैसे कि आज्ञा चक्र) पर अत्यधिक ध्यान देने से शरीर और मन असंतुलित हो सकते हैं। इसलिए, आपको अपनी ऊर्जा को नीचे की ओर (मूलाधार चक्र) लाने की जरूरत हो सकती है। इसके लिए आप निम्नलिखित कर सकते हैं:

  • मूलाधार चक्र ध्यान: कुछ समय के लिए अपने ध्यान को आज्ञा चक्र से हटाकर मूलाधार चक्र (Root Chakra) पर केंद्रित करें। इससे आपकी ऊर्जा संतुलित होगी और जमीनी संपर्क मजबूत होगा।
  • प्रकृति से संपर्क: धरती पर नंगे पाँव चलना या प्रकृति के बीच समय बिताना आपकी ऊर्जा को संतुलित कर सकता है।

2. गर्दन और शरीर का स्ट्रेचिंग:

गर्दन की जकड़न को दूर करने के लिए आप नियमित रूप से गर्दन और कंधों की स्ट्रेचिंग कर सकते हैं। इससे आपकी मांसपेशियों की जकड़न दूर होगी और रक्त संचार बेहतर होगा। कुछ स्ट्रेचिंग अभ्यास जैसे:

  • धीरे-धीरे सिर को एक ओर से दूसरी ओर घुमाना।
  • गहरी साँस लेते हुए गर्दन की मांसपेशियों को रिलैक्स करना।

प्राणायाम भी बहुत मददगार हो सकता है, जैसे अनुलोम-विलोम और भ्रामरी प्राणायाम। इससे तनाव और जकड़न कम हो सकती है।

3. शीतलन तकनीकें (Cooling Techniques):

जलन को कम करने के लिए शीतलन ध्यान या शीतली प्राणायाम का अभ्यास करें:

  • शीतली प्राणायाम: यह प्राणायाम शरीर में ठंडक लाता है और अत्यधिक ऊर्जा को शांत करता है। जीभ को नली की तरह बनाकर श्वास लें और फिर नाक से श्वास छोड़ें।

4. ऊर्जा संतुलन:

  • ध्यान के दौरान आप अपने पूरे शरीर की ऊर्जा को संतुलित करने पर ध्यान दें। विशेष रूप से, मस्तक के चक्रों पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, ऊर्जा को पूरे शरीर में फैलाने का प्रयास करें।
  • धीरे-धीरे क्राउन चक्र (सहस्त्रार) की ओर ऊर्जा बढ़ाने का अभ्यास करें, लेकिन पहले जमीनी संपर्क और ऊर्जा संतुलन पर ध्यान दें।

5. गुरु का मार्गदर्शन:

अगर यह जलन और असंतुलन लंबे समय तक बना रहता है, तो किसी अनुभवी साधक या गुरु से मार्गदर्शन लेना लाभकारी हो सकता है। वे आपकी ऊर्जा को सही दिशा में चैनलाइज करने में मदद कर सकते हैं।

6. हल्का भोजन और पानी:

आपकी ऊर्जा की तीव्रता को कम करने के लिए हल्का भोजन लें और पर्याप्त पानी पिएँ। अत्यधिक भारी या मसालेदार भोजन से जलन बढ़ सकती है।

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Q. Spiritual person ko gussa kyu aata hai. Na chahte huye bhi kisi k uper gussa kyu aata hai. Spiritual person ko chup rehna achcha kyu lagta hai. Kisi se baat krne ko maan nahi krta.

Ans: गुस्सा एक प्राकृतिक भावना है, और आध्यात्मिक व्यक्ति भी इसके प्रभाव से मुक्त नहीं होते। हालांकि वे अपनी भावनाओं पर अधिक नियंत्रण पाने की कोशिश करते हैं, फिर भी कुछ स्थितियों में गुस्सा आना स्वाभाविक हो सकता है। इसके कुछ कारण हो सकते हैं:
  • अंतर्मुखी प्रकृति: आध्यात्मिक साधक अक्सर अंतर्मुखी हो जाते हैं, और जब बाहरी दुनिया के साथ उनका तालमेल नहीं बैठता या लोग उनके दृष्टिकोण को नहीं समझते, तो उन्हें निराशा या गुस्सा महसूस हो सकता है।

  • अधूरी साधना: साधना के कुछ स्तरों पर, व्यक्ति अपनी भावनाओं पर पूर्ण नियंत्रण हासिल नहीं कर पाता। यह एक प्रक्रिया है, और साधक को अपने गुस्से और अन्य भावनाओं पर धीरे-धीरे काम करना होता है।

  • आंतरिक संघर्ष: जब आध्यात्मिक व्यक्ति आंतरिक रूप से किसी बदलाव या संघर्ष से गुजर रहा होता है, तो यह बाहरी रूप से गुस्से के रूप में प्रकट हो सकता है। यह स्वयं के साथ असंतुलन का संकेत हो सकता है, जो साधना के दौरान होता है।

  • गहरे स्तर पर समझ की कमी: जब व्यक्ति को लगता है कि दूसरे लोग उसकी गहरी आध्यात्मिक समझ को नहीं समझते या उसकी भावना का अनादर करते हैं, तो गुस्सा आ सकता है। यह आध्यात्मिक और सांसारिक दृष्टिकोण के बीच की असमानता से उत्पन्न हो सकता है।

2. आध्यात्मिक व्यक्ति को चुप रहना क्यों अच्छा लगता है?

आध्यात्मिक साधक अक्सर चुप रहने और आत्मनिरीक्षण करने में अधिक समय बिताना पसंद करते हैं। इसके कुछ कारण हो सकते हैं:

  • आंतरिक शांति की खोज: आध्यात्मिक यात्रा में, साधक बाहरी दुनिया से कटकर अपने भीतर की शांति और सच्चाई को अनुभव करना चाहता है। चुप्पी उसे अपने भीतर की गहराई में जाने और सच्चाई को समझने में मदद करती है।

  • बाहरी शोर से दूर रहना: आध्यात्मिक व्यक्ति को दुनिया का शोर-शराबा और हलचल भारी और व्यर्थ महसूस हो सकती है। वे अधिक सूक्ष्म और शांत वातावरण की तलाश करते हैं ताकि वे अपने ध्यान और साधना में स्थिरता पा सकें।

  • अनावश्यक बातों से बचाव: आध्यात्मिक व्यक्ति समझता है कि बहुत सी बातें अनावश्यक होती हैं और उनमें ऊर्जा व्यर्थ हो जाती है। इसलिए, वे केवल महत्वपूर्ण और अर्थपूर्ण संवाद की ओर आकर्षित होते हैं, और बिना कारण की बातें करने से बचते हैं।

3. किसी से बात करने का मन क्यों नहीं करता?

जब व्यक्ति आध्यात्मिक यात्रा पर होता है, तो उसकी प्राथमिकताएँ बदल जाती हैं। इस कारण से, कई बार उसका मन लोगों से संवाद करने या सामान्य सामाजिक गतिविधियों में भाग लेने का नहीं करता। इसके कुछ कारण हो सकते हैं:

  • आध्यात्मिक ध्येय: साधक का मन बाहरी लोगों और दुनिया से हटकर अपने आत्म-साक्षात्कार की ओर केंद्रित हो जाता है। इस स्थिति में, साधक को सांसारिक बातों में कम रुचि होती है।

  • ऊर्जा संरक्षण: आध्यात्मिक साधक को यह एहसास होता है कि बाहरी संवाद और बातचीत में ऊर्जा खर्च होती है। वे अपनी ऊर्जा को ध्यान, साधना, और आत्मिक विकास के लिए संचित रखना पसंद करते हैं।

  • आंतरिक संतोष: साधक को अपने भीतर ही आनंद और शांति मिलने लगती है, जिससे बाहरी रिश्तों या बातचीत की आवश्यकता महसूस नहीं होती। बाहरी दुनिया से दूरी उनके लिए स्वाभाविक हो जाती है।

गुस्से और चुप्पी से निपटने के उपाय:

  1. आत्मनिरीक्षण: जब गुस्सा आए, तो स्वयं को समझने की कोशिश करें कि यह क्यों हो रहा है। इसे एक अवसर के रूप में देखें, जिससे आप अपनी भावनाओं पर बेहतर नियंत्रण पा सकते हैं।

  2. प्राणायाम और ध्यान: गहरी सांस लेने की तकनीकें और ध्यान गुस्से को नियंत्रित करने और मानसिक शांति बनाए रखने में मदद करते हैं।

  3. संयम और धैर्य: आध्यात्मिक व्यक्ति का मार्ग धैर्य और संयम से भरा होता है। दूसरों से दूरी बनाना स्वाभाविक हो सकता है, लेकिन संयम से काम लें और जब आवश्यक हो, तब संवाद करें।

  4. आंतरिक और बाहरी संतुलन: साधना के दौरान खुद को पूरी तरह बाहरी दुनिया से अलग न करें। एक संतुलन बनाए रखें, जहां आप आंतरिक शांति और बाहरी संबंधों के बीच सामंजस्य स्थापित कर सकें।

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Q. ध्यान करने से मेरे नाभि के निचे और रीढ़ कि हड्डी मे दर्द रहता है, गुरूजी
Ans: ध्यान करते समय पीठ के निचले हिस्से में तकलीफ़ महसूस होना आम बात है। आपको आवश्यक मुद्रा में समायोजित होने के लिए पीठ की मांसपेशियों को मज़बूत बनाने की ज़रूरत होती है। आप उचित आसन, सहारे का उपयोग, स्ट्रेचिंग और कोर को मजबूत करके असुविधा को कम कर सकते हैं और दर्द से बच सकते हैं

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Q. Mera nam Salma ha has and ka nam amir ha ha Mary ulad NAHI ha shadi ko Sath sal ho choky ha is paryshni ka Hal batay .,......form paikstan
मेरा नाम सलमा हा हस और का नाम अमीर हा हा मेरी उलाद नहीं है शादी को 7 साल हो चोकी हा इस परेशानी का हल बताय.,......पाकिस्तान से

Ans:इसे पति-पत्नी दोनों करें

यदि बच्चा नहीं हो रहा है, तो आध्यात्मिक दृष्टिकोण से इसे प्रजनन प्रणाली और संबंधित ऊर्जा केंद्रों पर ध्यान केंद्रित करके ठीक किया जा सकता है। योग और चक्र ध्यान में इस समस्या से निपटने के लिए स्वाधिष्ठान चक्र और मूलाधार चक्र पर ध्यान केंद्रित करने की सलाह दी जाती है। इन दोनों चक्रों का प्रजनन क्षमता और यौन ऊर्जा से गहरा संबंध है।

1. स्वाधिष्ठान चक्र (Sacral Chakra):

  • स्थान: यह चक्र नाभि के नीचे, जननांगों के पास स्थित होता है।
  • संबंध: स्वाधिष्ठान चक्र हमारी रचनात्मकता, यौन ऊर्जा, और भावनात्मक संतुलन से जुड़ा होता है। प्रजनन क्षमता के लिए यह चक्र अत्यंत महत्वपूर्ण है।
  • असंतुलन के लक्षण: अगर यह चक्र अवरुद्ध या असंतुलित हो जाता है, तो व्यक्ति को यौन समस्याएँ, प्रजनन क्षमता में कमी, या भावनात्मक अस्थिरता का सामना करना पड़ सकता है।
  • ध्यान: इस चक्र पर ध्यान करते समय, आपको इस चक्र का संतुलन बनाए रखने के लिए सकारात्मक ऊर्जा और प्रजनन क्षमता की कल्पना करनी चाहिए। आप 'वाम' बीज मंत्र का जाप कर सकते हैं, जो इस चक्र को सक्रिय करने में सहायक है।

2. मूलाधार चक्र (Root Chakra):

  • स्थान: यह चक्र रीढ़ के आधार पर, जननांगों और मलाशय के बीच स्थित होता है।
  • संबंध: यह चक्र हमारी शारीरिक सुरक्षा, स्थिरता, और जीवन ऊर्जा से जुड़ा होता है। यह हमारी प्रजनन क्षमता के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • असंतुलन के लक्षण: अगर मूलाधार चक्र असंतुलित है, तो व्यक्ति को शारीरिक अस्वस्थता, भय, और जीवन में अस्थिरता महसूस हो सकती है। इससे प्रजनन क्षमता पर भी असर पड़ सकता है।
  • ध्यान: मूलाधार चक्र को सक्रिय और संतुलित करने के लिए आप 'लम' बीज मंत्र का जाप कर सकते हैं। ध्यान के दौरान अपने शरीर की जड़ों की मजबूती और स्थिरता का अनुभव करें।

ध्यान और प्रजनन के लिए अन्य सुझाव:

  • प्राणायाम (सांस की तकनीकें): गहरी सांस लेने की तकनीकें (प्राणायाम) जैसे अनुलोम-विलोम और भ्रामरी प्राणायाम, शरीर की ऊर्जा को संतुलित करती हैं और तनाव को कम करती हैं, जो प्रजनन क्षमता को प्रभावित कर सकता है।
  • ध्यान में कल्पना: ध्यान के दौरान, अपनी प्रजनन प्रणाली को स्वस्थ और संतुलित रूप में देखने की कल्पना करें। जीवन और सृजन की ऊर्जा का आह्वान करें।
  • आहार और जीवनशैली: योग और ध्यान के साथ-साथ, पोषक आहार और स्वस्थ जीवनशैली भी महत्वपूर्ण हैं। चक्रों पर ध्यान लगाने से पहले शरीर को साफ और स्वस्थ रखना आवश्यक है।
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DATE: 21-10-2024

Q. wo jo tishri aakh jo na white na black dikhai deti he ushke bare me bataya hi nahi mujhe wo hi dikhai deta he our mere pass guru nahi he plz bataye


वो जो तिसरी आंख जो ना सफेद ना काली दिखाती है वो उसके बारे में बताता है?

Ans:""तीसरी आंख जो न सफेद न काली" का जिक्र अक्सर आध्यात्मिकता, दर्शन और प्रतीकात्मकता के संदर्भ में किया जाता है। यह आंख भौतिक दृष्टि से परे देखने की क्षमता का प्रतिनिधित्व करती है।

रंग का अभाव:
इसका न सफेद और न काला होना इस बात का प्रतीक है कि यह किसी भी भौतिक रूप, रंग या आकार से परे है। यह एक अंतर्दृष्टि और मानसिक दृष्टि का प्रतीक है जो केवल भौतिक दुनिया को नहीं, बल्कि आध्यात्मिक या सूक्ष्मतमा को भी देख सकती है।
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Q. Right ear me sun awaj ana kya means h??
दाहिने कान में सुन आवाज आना क्या मतलब है??
Ans.

दाहिने कान में अनहद नाद (Anahad Nad) सुनाई देना एक गहन आध्यात्मिक अनुभव है, जो ध्यान, साधना, या ऊर्जा के प्रवाह के दौरान हो सकता है। इसे विभिन्न संदर्भों में समझा जा सकता है
यह आवाज़ आपके भीतर से गुजर रही ऊर्जा का संकेत हो सकती है। अनहद नाद सुनने का अनुभव यह दर्शाता है कि आप अपनी आंतरिक ऊर्जा के साथ जुड़ रहे हैं और आपकी चक्रों में संतुलन बन रहा है।
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Q:Mera vi ek sabal he me 3 saal pehle meditate karta tha 😏 30 min subah aur sham matlab daily 1 hour third eye Puri tara se khula tha aur third eye ka power anek prakar he jheseki 6th sence,prediction aur bahut kuch kichi bekti ko akkho se dhek kar  uska thoughts,past,future Janna aur ha mujhe apna family apna nahi lagta tha 😅 
Akele rahna nature ke sath jhesa bhi tha me bohut khus tha aur ab kuch pucho mat sorry 😔 Mera sabaal he 
3 dino se me meditate ya Dayan karna suru Kiya hu jab me kisi vhi bekti ya cheese per focus kar hu tho Mera third eye area vari ya vibratite karta he Q ?
3 दिनों से पहले ध्यान करना शुरू किया था, जब मैं किसी व्यक्ति या वास्तु पर ध्यान केंद्रित कर रहा था तो मेरा तीसरा नेत्र क्षेत्र कंपन कर रहा था?

Ans:तीसरा नेत्रा खुलने का संकेत है ध्यान के दौरान तीसरे नेत्र क्षेत्र में कंपन का अनुभव एक सामान्य और महत्वपूर्ण संकेत हो सकता है, विशेषकर जब आप ध्यान या साधना में गहराई से जुड़ते हैं। यह अनुभव आपके मानसिक और आध्यात्मिक विकास की दिशा में कई संभावित अर्थ रख सकता है। यहाँ कुछ विचार दिए गए हैं:

तीसरा नेत्र, जिसे आज्ञा चक्र भी कहा जाता है, भौहों के बीच स्थित होता है और इसे आध्यात्मिक दृष्टि और अंतर्दृष्टि का केंद्र माना जाता है। ध्यान के दौरान इस क्षेत्र में कंपन का अनुभव आपके भीतर की ऊर्जा का जागरण दर्शा सकता है। यह संकेत हो सकता है कि आपकी आंतरिक ऊर्जा सक्रिय हो रही है।

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Q.Mai Raat mei bahut bhayanak Sapna dekha 12:00 bich mei nind khul gai Mera kholne ke bad nind nahi a raha hai Aisa kyon hota Hai Bhai 😢😢
मेरी रात में बहुत भयानक सपना देखा 12:00 बजे तक मेरी नींद खुल गई नींद खोलने के बाद नींद नहीं आ रहा है ऐसा क्यों होता है
Ans:
आप रात को सोने से पहले हनुमान चालीसा कर के सोए और सुबह और रात को कमरे में कपूर जला कर चारो तरफ घर में घुमा दे , और अपने लेफ्ट (बाई तरफ) साइड निम्बू रख कर सोए सुबह डस्टबिन में डाल दे ऐसा 7 दिन करे

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Q.Aura ko clean kese kre 
Jaise kisi bahut jaldi najar lg jati hai
Yw bimar rhtr kabhi kuchh to kbhi hota rhta hai
आभा को साफ़ कैसे करें 
जैसे कोई बहुत जल्दी नजर लग जाती है
ये बिमार रहता है कभी कुछ तो कभी होता रहता है

Ans:रोजाना आप अपने ही कपूर से आरती करवाएं या खुद कर लें। मतलब थाली में कपूर जला कर अपने पे क्लॉकवाइज 7 बार रोज घूमें

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Q.गुरुजी नाभि से ऊर्जा जो भी उठने वाली ठंडी होती है उसका वीडियो बताओ क्या

Ans:
नाभि से उठने वाली ऊर्जा, जिसे अक्सर नाभि चक्र या स्वाधिष्ठान चक्र के संदर्भ में देखा जाता है, शरीर के ऊर्जा केंद्रों में से एक है। यह चक्र ऊर्जा, संतुलन और मानसिक स्थिरता का प्रतीक है। जब आप इस क्षेत्र से ऊर्जा को महसूस करते हैं, खासकर ठंडी ऊर्जा के रूप में, तो इसके कई आध्यात्मिक और शारीरिक अर्थ हो सकते हैं
नाभि से उठने वाली ठंडी ऊर्जा संकेत देती है कि आपके शरीर में ऊर्जा का प्रवाह हो रहा है। यह आपकी आंतरिक शक्ति को जागृत कर सकती है और आपको अधिक संतुलित और स्थिर महसूस करवा सकती है।
ठंडी ऊर्जा का अनुभव आपके आध्यात्मिक विकास का संकेत हो सकता है। यह आपको अधिक संवेदनशील बना सकती है और आपके ध्यान और साधना की गहराई को बढ़ा सकती है।
यदि आपको नाभि से ठंडी ऊर्जा का अनुभव होता है, तो यह आपके शरीर की ऊर्जा प्रणाली का संकेत हो सकता है। यह आपके आंतरिक अंगों के संतुलन को दर्शा सकती है और आपके स्वास्थ्य में सुधार का संकेत दे सकती है।
नाभि से उठने वाली ऊर्जा आपके मन और शरीर के बीच एक संतुलन स्थापित करने में मदद कर सकती है। यह मानसिक तनाव को कम करने और आपके समग्र कल्याण को बढ़ाने में सहायक हो सकती है।
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Q.Hamaari ankho ke chaaron taraf tarange chalti h     ye kya h
ध्यान करने से हमारी आँखो के चारों तरफ तरंगे चलती है ये क्या है

Ans:
ध्यान के दौरान, आपकी आंतरिक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ सकता है। आँखों के चारों ओर तरंगों का अनुभव इस ऊर्जा का संकेत हो सकता है। यह आपकी ऊर्जा के स्तर के संतुलन को दर्शा सकता है।
जब आप ध्यान में गहराई से जाते हैं, तो आप अपने चारों ओर की ऊर्जा को महसूस करने लगते हैं। आँखों के चारों ओर तरंगों का अनुभव ध्यान की इस गहराई का प्रतीक हो सकता है।
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Q.Sab bataya lekin ye ni bataya ki green color ke aura ka kya mtlab hai
हरे रंग की आभा  Mandal का क्या मतलब है

Ans:
हरे रंग की आभा या हरे रंग का मंडल विभिन्न सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और मानसिक दृष्टिकोण से कई अर्थ रखता है। यहाँ कुछ प्रमुख अर्थ और उनके संदर्भ दिए गए हैं
हरा रंग प्रकृति, जीवन, और ताजगी का प्रतीक है। यह ऊर्जा, विकास, और नवजीवन का प्रतिनिधित्व करता है। जब आप हरे रंग की आभा या मंडल देखते हैं, तो यह आपके जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और प्राकृतिक बलों के साथ जुड़ने का संकेत हो सकता है।
हरा रंग स्वास्थ्य और संतुलन का प्रतीक है। यह शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को दर्शाता है। हरे रंग की आभा देखने का मतलब हो सकता है कि आप अपने जीवन में स्वास्थ्य और संतुलन की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।
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Q.मुझे सोते वक्त फूलों की खुशबू आती है जो कभी मैने ली ही नहीं हो ! ऐसा क्यों होता है ?


Ans:
कई सांस्कृतिक और आध्यात्मिक मान्यताओं के अनुसार, फूलों की खुशबू का अनुभव आध्यात्मिक जागरूकता या दिव्य संदेश का प्रतीक हो सकता है। इसे एक सकारात्मक संकेत या आशीर्वाद माना जा सकता है।
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Q.विनम्र नमन,कृपया मेरा मार्गदर्शन करें। 
ध्यान में या किसी भी समय , कुछ पल के लिए मुझे लगता है जैसे तालू पर शीतल जल सा बह रहा है। ऐसा क्यो हो रहा है।


Ans:ये संकेत है कि आप हमें परमात्मा की शक्ति से जोड़ रहे हैं
तालू पर शीतल जल का अनुभव एक सकारात्मक और प्रेरणादायक संकेत हो सकता है। यह आपकी ध्यान की गहराई, ऊर्जा के प्रवाह, और मानसिक स्थिति का प्रतीक है। इसे एक विशेष अनुभव के रूप में स्वीकार करें और इसे अपनी ध्यान साधना के दौरान सकारात्मकता के रूप में देखें। यदि यह अनुभव आपको और अधिक शांति और संतुलन प्रदान करता है, 
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Q.Aakash ganga ka bare me bataiye


Ans:आकाश गंगा या गैलेक्सी एक विशाल तारा समूह है जिसमें अरबों तारे, ग्रह, गैस, धूल और अन्य खगोलीय वस्तुएं शामिल होती हैं। आकाश गंगा हमारे सौर मंडल का घर है और यह अपनी अद्भुत संरचना और विशेषताओं के लिए जानी जाती है। यहाँ आकाश गंगा के बारे में कुछ प्रमुख जानकारी दी गई है:

1. आकाश गंगा का आकार और संरचना:
आकाश गंगा एक स्पाइरल गैलेक्सी है, जिसमें एक केंद्रीय भाग (बुलबुला) और चार प्रमुख भुजाएँ होती हैं। यह एक सपाट डिस्क के रूप में फैली हुई है, जिसके चारों ओर एक गोलाकार हैलो (halo) है जिसमें पुराने तारे और गोलाकार क्लस्टर होते हैं।
2. तारों की संख्या:
आकाश गंगा में लगभग 100 से 400 अरब तारे हैं। इनमें से कुछ तारे हमारे लिए देखने योग्य हैं, जबकि अन्य केवल दूरबीन से देखे जा सकते हैं।
3. ग्रह और सौर मंडल:
आकाश गंगा में अनेक ग्रह भी हैं, जिनमें हमारा सौर मंडल शामिल है। हमारे सौर मंडल में एक तारा (सूर्य) और इसके चारों ओर घूमने वाले ग्रह (जैसे पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति) और अन्य खगोलीय वस्तुएँ हैं।
4. आकार:
आकाश गंगा का व्यास लगभग 100,000 प्रकाश वर्ष है। इसका मतलब है कि प्रकाश को आकाश गंगा के एक किनारे से दूसरे किनारे तक पहुँचने में लगभग 100,000 वर्ष लगते हैं।
5. गति:
आकाश गंगा भी ब्रह्मांड में गति कर रही है। यह अन्य गैलेक्सियों के साथ मिलकर एक समूह का हिस्सा है, जिसे लोरेन्ट गैलेक्सी समूह कहा जाता है।
6. केंद्र में सुपरमैसिव ब्लैक होल:
आकाश गंगा के केंद्र में एक सुपरमैसिव ब्लैक होल है, जिसे सैजिटेरियस ए* (Sagittarius A*) कहा जाता है। यह ब्लैक होल हमारे सूरज के मुकाबले लाखों गुना अधिक द्रव्यमान रखता है।
7. सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व:
आकाश गंगा का सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व भी है। विभिन्न संस्कृतियों में इसे विभिन्न नामों से जाना जाता है। भारतीय संस्कृति में इसे गंगा कहा जाता है, जो नदियों की रानी मानी जाती है।
8. अध्ययन और अनुसंधान:
आकाश गंगा का अध्ययन खगोलज्ञों द्वारा किया जाता है ताकि इसके गठन, विकास, और संरचना को समझा जा सके। हबल स्पेस टेलीस्कोप जैसे उपकरणों ने आकाश गंगा की तस्वीरें ली हैं और इसके बारे में बहुत सी जानकारी प्रदान की है।
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Q. Talve jab garm hote hai to body me BhI pasina ata hai Asa kyu ?

Ans
लिवर बहुत गरम है इसलिए ऐसा हो रहा है अपने लिवर पे आइस पैक (Ice pack ) डेली रखे 5-10 मिनट

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Q.जब निरन्तर चक्र जागरण अभ्यास से,, सहस्त्रार चक्र पर असहनीय उर्जा एकत्र हुई महसूस होनी लग जाए,,, तो क्या अभ्यास छोड़ दे या फिर कुछ और करें
Ans.
जब सहस्त्रार चक्र पर असहनीय ऊर्जा का अनुभव होने लगे, तो अभ्यास में रुकावट लेने या उसे नियंत्रित करने की आवश्यकता हो सकती है। सहस्त्रार चक्र का जागरण एक गहन प्रक्रिया है, और इसके दौरान संतुलन बनाना बहुत जरूरी है। निम्नलिखित उपाय आपके लिए सहायक हो सकते हैं:
नीचे के चक्रों पर ध्यान केंद्रित करें: इस स्थिति में, जड़ (मूलाधार) और स्वाधिष्ठान चक्र पर ध्यान लगाना सहस्त्रार की ऊर्जा को स्थिर कर सकता है और संतुलन बना सकता है।
गहरी सांसें लें और ध्यान को धीमा करें: धीमी और गहरी श्वास-प्रश्वास लेने से सहस्त्रार में एकत्र ऊर्जा का संतुलन किया जा सकता है।
जमीन से जुड़े रहना: साधारण शारीरिक गतिविधियाँ जैसे पैदल चलना, प्राकृति में समय बिताना भी संतुलन में सहायक है।
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Q.Gyatri mantra ke mansik jaap me hone vale lakshan

Ans. गायत्री मंत्र के मानसिक जप के दौरान होने वाले लक्षणों में कई आध्यात्मिक और मानसिक परिवर्तन अनुभव किए जा सकते हैं। यह अनुभव हर व्यक्ति के लिए अलग हो सकते हैं, लेकिन कुछ सामान्य लक्षण इस प्रकार हैं: शांत और स्थिर मन: गायत्री मंत्र के मानसिक जप से मन धीरे-धीरे शांत और स्थिर होने लगता है। विचारों का बहाव कम होता है, और मन में शांति और स्थिरता का अनुभव होता है। सकारात्मक ऊर्जा का अनुभव: जप के दौरान और उसके बाद सकारात्मक ऊर्जा का अनुभव होता है। शरीर में ऊर्जा और उत्साह बढ़ता है, जिससे दिनभर के कामों में स्फूर्ति महसूस होती है। मन और शरीर का हल्का महसूस होना: गायत्री मंत्र जप से मन और शरीर में हल्कापन महसूस होने लगता है। इससे तनाव कम होता है, और शरीर में एक नई ताजगी महसूस होती है। चेतना का विस्तार: मानसिक जप से धीरे-धीरे चेतना का स्तर ऊँचा होता है। इससे आंतरिक शांति, आत्म-साक्षात्कार और आत्म-ज्ञान का अनुभव होने लगता है। विचारों की स्पष्टता: गायत्री मंत्र जप से मानसिक स्पष्टता और विचारों में स्थिरता आती है। निर्णय लेने की शक्ति बढ़ती है और सोच में सकारात्मकता का समावेश होता है। आत्मविश्वास और संकल्प शक्ति का विकास: जप से आत्मविश्वास और संकल्प शक्ति बढ़ती है, जिससे जीवन में किसी भी चुनौती का सामना करने की शक्ति मिलती है। आंतरिक ऊर्जा का जागरण: नियमित जप से शरीर की ऊर्जा केंद्र, जैसे चक्र, जागृत हो सकते हैं। इससे शरीर में कंपन, गर्मी, या ऊर्जा का संचरण महसूस हो सकता है। ध्यान की गहराई बढ़ना: गायत्री मंत्र जप ध्यान की गहराई को बढ़ाता है, जिससे लंबे समय तक ध्यान में रहना आसान हो जाता है। शारीरिक और मानसिक शांति: गायत्री मंत्र जप का प्रभाव शरीर और मन दोनों पर होता है। इससे नींद बेहतर होती है और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है। -----------------------------------------------------------------------------------------------------------

Q.Parnam guru ji muje pooja ke samay gar ya mandir me kuch pal meri left aankh fadakti hai please aap yeah batay ki esha kyu hota hai thank you

Ans. पूजा के समय अगर आपकी बाईं आंख फड़कती है, तो इसे कई दृष्टिकोणों से देखा जा सकता है। धार्मिक, मानसिक और शारीरिक दृष्टिकोण से इसे समझने की कोशिश करते हैं: आध्यात्मिक दृष्टिकोण से: कई मान्यताओं के अनुसार, पूजा के दौरान बाईं आंख का फड़कना शुभ संकेत हो सकता है। माना जाता है कि जब हम पूजा करते हैं, तब सकारात्मक ऊर्जा हमारे आसपास सक्रिय हो जाती है, और ऐसी घटनाएँ किसी दिव्य उपस्थिति या आशीर्वाद का संकेत हो सकती हैं। कुछ परंपराओं में इसे ईश्वर या किसी दैवीय शक्ति का ध्यानाकर्षण माना जाता है। ध्यान में गहराई का संकेत: कई बार ध्यान और पूजा के दौरान हम एकाग्रता के गहरे स्तर में पहुँच जाते हैं। इस अवस्था में हमारी इंद्रियाँ संवेदनशील हो जाती हैं, और आंख का फड़कना हमारे तंत्रिका तंत्र की प्रतिक्रिया हो सकती है। यह ध्यान और पूजा की गहराई को दर्शाता है और हमारे ऊर्जा केंद्रों (चक्रों) के जागरण का लक्षण भी हो सकता है। -----------------------------------------------------------------------------------------------------------
Q.I am listening to this anahat naad since last 20 years after I started meditating. Many pitches has changed since then , initially it was a distant sweet flute sound, now it's the sound of vast emptiness. This emptiness is also felt by me physically while walking the streets. I don't know what to do, if you will kindly give me some solution. मैं ध्यान करना शुरू करने के बाद पिछले 20 वर्षों से इस अनाहत नाद को सुन रहा हूं। तब से कई स्वर बदल गए हैं, शुरू में यह दूर की मधुर बांसुरी की आवाज थी, अब यह विशाल शून्यता की आवाज है। यह खालीपन मुझे सड़क पर चलते समय शारीरिक रूप से भी महसूस होता है। मुझे समझ नहीं आ रहा कि मैं क्या करूँ, यदि आप कृपया मुझे कोई समाधान बतायें। अगर सहस्रार चक्र ब्रह्म की जगह है या यहां ब्रह्मरंधेर है या कुंडलिनी भी ब्रह्म के कमल तक जाती है तो फिर यहां शिव को क्यों बताया जाता है" Ans. आपके अनुभव में अनाहत नाद के साथ जो बदलाव आया है, वह आपके ध्यान और आंतरिक यात्रा के गहरे विकास को दर्शाता है। प्रारंभ में यह नाद एक मधुर बांसुरी की तरह था, लेकिन अब यह व्यापक शून्यता का स्वर बन चुका है, जिसे आप भौतिक रूप से भी महसूस कर रहे हैं। यह अनुभव आत्मा के गहरे स्तर से जुड़े हैं, और इसे समझने व इससे संतुलित रहने के लिए कुछ कदम मददगार हो सकते हैं: स्वीकृति और समर्पण: इस नाद को अपने ध्यान में एक गवाह की तरह सुनते रहें, बिना इसे बदले या हटाने की कोशिश किए। इसे उस अनंत का हिस्सा मानें जो आपके भीतर है और जो बाहर भी है। जड़ता और स्थिरता बनाए रखें: जब आप इस शून्यता के स्वर का अनुभव करते हैं, तो अपनी दिनचर्या में कुछ स्थिरता बनाए रखें। पृथ्वी से जुड़े रहने के लिए जड़ता पर आधारित साधनाएँ (जैसे मूलाधार चक्र का ध्यान) करें। यह नाद आपको भीतर की गहराई में ले जा रहा है, और स्थिरता इसे समायोजित करने में सहायक होगी। सकारात्मक ऊर्जा से संतुलन: यदि यह शून्यता कभी आपको भारी महसूस हो, तो प्राणायाम, विशेषकर गहरी श्वास-प्रश्वास का अभ्यास करें। यह आपकी ऊर्जा को स्थिर कर सकारात्मकता में बदल सकता है। व्यावहारिक जीवन पर ध्यान दें: ध्यान और अध्यात्मिक अनुभवों के साथ-साथ अपने जीवन की साधारण चीज़ों, जैसे परिवार, मित्र, और प्रकृति से जुड़े रहना भी महत्वपूर्ण है। यह आपको संतुलन में रखता है और अध्यात्मिक अनुभवों को सहज बनाता है। मंत्र जाप या कीर्तन: यदि संभव हो तो "ॐ" या किसी अन्य शांतिप्रदायक मंत्र का मानसिक जाप भी कर सकते हैं। इससे ध्यान के दौरान स्थिरता और सुरक्षा महसूस होती है। यह अनाहत नाद एक गहरी यात्रा का हिस्सा है, जो आत्मज्ञान और परमानंद की ओर ले जा सकता है। इसे सहजता और प्रेम के साथ अपनाएँ, और जैसे-जैसे समय बीतेगा, यह नाद अपने आप एक स्थिरता और संतुलन में बदल सकता है। -----------------------------------------------------------------------------------------------------------
Q.Brahman Gufa & BankNaal me antar kya hai?
Ans.
बावर गुफा ध्यान की एक गहरी अवस्था है जहाँ साधक अपने भीतर शांति और मौन का अनुभव करता है, जबकि बांकनाल कुंडलिनी की यात्रा का मार्ग है जो चक्रों से होते हुए सहस्रार तक पहुँचता है।
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Q.Paran jap k rahaeeys batya sir? Ans. प्राण जप वह साधना है जिसमें मंत्र के उच्चारण के साथ प्राण या जीवन ऊर्जा को जोड़ दिया जाता है। "प्राण" यहाँ शारीरिक और मानसिक ऊर्जा का स्रोत है, जो हमें जीवित रखता है। इसका रहस्य यह है कि साधक अपने प्राणों के साथ मंत्र का जाप करता है, ताकि मंत्र की शक्ति को पूरी तरह से अनुभव किया जा सके। इस प्रक्रिया में साधक अपने प्राणों को उस मंत्र में लयबद्ध कर देता है, जिससे मंत्र की शक्ति कई गुना बढ़ जाती है और आंतरिक ऊर्जा का संचार होता है। -----------------------------------------------------------------------------------------------------------
Q.Sir mujhe meditation me pani wali cave dekhai deti hai is kya matlab hai ? Ans. ध्यान के दौरान पानी वाली गुफा देखने का अनुभव गहरे आध्यात्मिक और मानसिक विकास का संकेत हो सकता है। इस तरह के दृश्य आमतौर पर व्यक्ति की आंतरिक स्थिति, भावनाएँ और मानसिक प्रक्रियाएँ दर्शाते हैं। आइए इसे और विस्तार से समझते हैं: गुफा आमतौर पर एक सुरक्षित और छिपा हुआ स्थान होती है, जो आत्म-खोज और गहराई में जाने का प्रतीक हो सकती है। यह आपके भीतर की गहराई, रहस्यों और आत्मा के अनजान पहलुओं की खोज का प्रतीक है। पानी का होना शुद्धता, जीवन और भावनाओं का प्रतीक होता है। यह भावनाओं का प्रवाह, अंतर्मुखी खोज और आंतरिक संतुलन को दर्शा सकता है। भावनात्मक स्थिति: यदि आप ध्यान के दौरान पानी वाली गुफा देखते हैं, तो यह आपकी भावनाओं को दर्शा सकता है। यह संकेत हो सकता है कि आप अपने भीतर की भावनाओं या तनाव को पहचान रहे हैं, और यह गुफा उस स्थान को दर्शा सकती है जहाँ ये भावनाएँ संरक्षित हैं। -----------------------------------------------------------------------------------------------------------

Date : 02-11-2024

Que.
Guru ji me 3-4 sal se meditation karata hu aba mene kucha dinose 7 Chakra meditation shuru liya hai bij mantra ka jap karata hu muje gusa bohot aa raha hai meditation karta tha to man shant rahata thaa aba 7 Chakra meditation shuru kiya to gusa jada badane laga ayasa kya Please guide kijiye 🙏🙏
Ans:

जब आप 7 चक्र ध्यान करते हैं और बीज मंत्र का जाप करते हैं, तो यह संभव है कि आपकी भावनाएं और ऊर्जा स्तर सक्रिय होने लगें, जो कुछ समय के लिए असंतुलित महसूस करा सकता है। विशेष रूप से चक्र ध्यान में, प्रत्येक चक्र में संचित भावनाएं और अवरोध उभरने लगते हैं, और यह स्थिति सामान्य है।

कई बार, मूलाधार (Root Chakra) या मणिपुर (Solar Plexus Chakra) पर ध्यान केंद्रित करने से गुस्सा, भय, या असुरक्षा जैसी भावनाएं जागृत होती हैं, क्योंकि इन चक्रों में अक्सर हमारी नकारात्मक भावनाएं संचित रहती हैं। जब हम इन चक्रों को सक्रिय करते हैं, तो पुरानी भावनाएं ऊपर आकर अपनी मौजूदगी दर्ज करवाती हैं, जिससे अस्थायी रूप से गुस्सा या चिड़चिड़ाहट बढ़ सकती है।

इससे निपटने के लिए:

  1. सहनशीलता और स्वीकार्यता – इस अनुभव को स्वीकार करें और इसे एक शुद्धिकरण प्रक्रिया मानें।
  2. मूलाधार और स्वाधिष्ठान चक्र पर संतुलित ध्यान – विशेष रूप से मूलाधार चक्र के बीज मंत्र को धीरे-धीरे और शांतिपूर्वक जाप करने की कोशिश करें।
  3. सहज श्वास – ध्यान से पहले और बाद में गहरी सांस लें। इससे आपको शांति और स्थिरता मिलेगी।
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Qus:
मुझे रात्री में बहेते पाणी की आवाज सुनाई देती है जैसे नदी में बाढ़ आयी हों, इसके बारे में बतायें

Ans:

ध्यान के दौरान बहते पानी की आवाज सुनाई देना, विशेष रूप से रात में, आपके भीतर के सूक्ष्म परिवर्तन और ऊर्जाओं की सक्रियता का संकेत हो सकता है। इस तरह की ध्वनियाँ साधकों को अक्सर तब सुनाई देती हैं, जब उनकी चेतना में गहराई से बदलाव हो रहा हो।

संभव कारण:

  1. सूक्ष्म ऊर्जा प्रवाह – यह बहते पानी की आवाज आपके शरीर में ऊर्जा का प्रवाह भी हो सकता है, जो अब आपकी चेतना के स्तर पर अधिक स्पष्टता से महसूस हो रहा है।
  2. अनाहत नाद (आंतरिक ध्वनि) – बहते पानी जैसी आवाज एक प्रकार का अनाहत नाद है, जो ध्यान की गहराई में स्वतः सुनाई देता है। इसे हमारे भीतर की आंतरिक ध्वनि या ऊर्जा के रूप में भी समझा जा सकता है।
  3. शुद्धिकरण की प्रक्रिया – यह ध्वनि आपके भीतर किसी गहरे अवरोध के शुद्धिकरण का भी संकेत हो सकती है, जैसे पुराने मानसिक और भावनात्मक अवरोध बह रहे हों।

क्या करें:

  • स्वीकार्यता और शांति – इसे ध्यान के अनुभव का हिस्सा मानकर इसे स्वीकारें और गहराई से इसे सुनने का प्रयास करें। इसे शांतिपूर्वक अनुभव करें, बिना किसी भय या द्वंद्व के।
  • श्वास पर ध्यान दें – यदि आप इसे सुनते वक्त अपने श्वास पर ध्यान केंद्रित करेंगी, तो यह आपको अधिक स्थिरता और स्पष्टता देगा।
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Que:
Hamare sanatan me anhad naad ka vistar se varnan konse pustak me milta hai... Kripya bataye

Ans:

सनातन परंपरा में अनहद नाद का विस्तार से वर्णन अनेक ग्रंथों में मिलता है। अनहद नाद को आंतरिक ध्वनि, दिव्य ध्वनि, या अनाहत नाद के रूप में भी जाना जाता है। इसके विषय में विस्तृत जानकारी देने वाले प्रमुख ग्रंथ निम्नलिखित हैं:

  1. नाद बिंदु उपनिषद – यह उपनिषद विशेष रूप से नाद योग, अनाहत नाद, और ध्यान के द्वारा भीतर की ध्वनियों के अनुभव पर केंद्रित है। इसमें नाद को आत्म-साक्षात्कार का माध्यम माना गया है और इसका विस्तार से वर्णन किया गया है।

  2. शिव संहिता – इस ग्रंथ में भी नाद योग का उल्लेख है, जिसमें ध्यान के माध्यम से आंतरिक ध्वनियों का अनुभव प्राप्त होता है। शिव संहिता में बताया गया है कि साधक को विभिन्न प्रकार की ध्वनियाँ सुनाई देती हैं जो आत्मज्ञान की ओर ले जाती हैं।

  3. हठयोग प्रदीपिका – इस ग्रंथ में हठयोग और कुंडलिनी योग का विस्तृत वर्णन है। नाद योग को यहाँ साधक के भीतर की आंतरिक ध्वनि के रूप में समझाया गया है, जो साधना की उच्च अवस्थाओं में प्रकट होती है।

  4. श्रीमद्भागवत महापुराण – इसमें भी ध्यान योग और आंतरिक ध्वनि (अनहद नाद) का उल्लेख मिलता है, जिसमें यह बताया गया है कि कैसे यह ध्वनि साधक को ईश्वर के करीब लाती है।

  5. ज्ञानेश्वरी (भावार्थ दीपिका) – संत ज्ञानेश्वर द्वारा रचित इस मराठी ग्रंथ में गीता के श्लोकों का भावार्थ है, जिसमें अनाहत नाद और नाद योग का सुंदर वर्णन है। इसे आत्मिक उन्नति का साधन माना गया है।

  6. विज्ञान भैरव तंत्र – इस तांत्रिक ग्रंथ में भगवान शिव और देवी पार्वती के संवाद के माध्यम से ध्यान की अनेक विधियों का वर्णन है, जिनमें अनहद नाद के ध्यान का भी उल्लेख है।

  7. गुरु ग्रंथ साहिब – गुरु नानक देव और अन्य संतों ने अनहद नाद का उल्लेख करते हुए इसे "धुर की बाणी" और "शब्द" के रूप में वर्णित किया है। इसमें अनहद नाद के माध्यम से परमात्मा की अनुभूति के मार्ग की चर्चा की गई है।

  8. संत साहित्य – संत कबीर, गुरु नानक, मीराबाई, तुलसीदास, और अन्य संतों ने अपने भजनों और पदों में अनहद नाद का उल्लेख किया है। उन्होंने इसे ईश्वर की दिव्य ध्वनि के रूप में वर्णित किया है जो साधना के माध्यम से सुनी जा सकती है।

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Que:
Guruji please aap mujhe ek short video mein bataiye kya ham Tribandh Pranayam se ham hamari kundli Shakti ko Jagran kar sakte hain AVN seven chakra ko

Ans:

त्रिबंध प्राणायाम, जिसमें तीन मुख्य बंधों (मूलबंध, उड्डीयान बंध और जालंधर बंध) का प्रयोग होता है, एक शक्तिशाली प्राणायाम है जो कुंडलिनी ऊर्जा को जागृत करने और सातों चक्रों को सक्रिय करने में सहायक हो सकता है। आइए इसे संक्षेप में समझते हैं:

  1. त्रिबंध प्राणायाम का अभ्यास करते समय तीनों बंधों का संयोजन किया जाता है, जिससे शरीर में ऊर्जा को संचित और नियंत्रित किया जाता है। यह प्रक्रिया शरीर के निचले हिस्से से ऊर्जा को ऊपर की ओर खींचती है, जो कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने में सहायक हो सकती है।

  2. मूलबंध – इसमें मूलाधार चक्र पर ध्यान केंद्रित किया जाता है और इसे संकुचित कर ऊर्जा को ऊपर की ओर खींचा जाता है। यह कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने की दिशा में पहला कदम है।

  3. उड्डीयान बंध – इस बंध में पेट को भीतर की ओर खींचा जाता है, जिससे ऊर्जा मणिपुर चक्र (नाभि क्षेत्र) से होती हुई हृदय क्षेत्र की ओर प्रवाहित होती है। इससे चक्रों की ऊर्जा अधिक सक्रिय होती है।

  4. जालंधर बंध – इसमें ठोड़ी को गले से लगाया जाता है, जिससे ऊर्जा का प्रवाह गले से होते हुए आज्ञा चक्र की ओर बढ़ता है। यह ऊर्जा के प्रवाह को ऊपर की ओर ले जाने में सहायक होता है।

क्या यह कुंडलिनी और सातों चक्रों को जागृत कर सकता है?

त्रिबंध प्राणायाम कुंडलिनी जागरण में सहायक तो है, लेकिन यह अकेले ही पर्याप्त नहीं है। कुंडलिनी जागरण एक गंभीर साधना है जिसमें संयम, सही मार्गदर्शन, और निरंतर अभ्यास की आवश्यकता होती है। इसके अलावा, सातों चक्रों की शुद्धि और संतुलन के लिए ध्यान और मंत्र जप का भी अभ्यास किया जाना चाहिए।

सावधानियाँ: कुंडलिनी शक्ति बहुत शक्तिशाली होती है, और त्रिबंध प्राणायाम का अभ्यास सही तरीके से और किसी अनुभवी गुरु के मार्गदर्शन में करना चाहिए।



Comments

  1. Me mere sadguru ke sath crown chakra ke upar ki chadhai karti hu. Mere sadguru muze lok darshan me fasne nhi dete, sidhe upar ki aur chadhai karte hai mera hath pakadkar. Mere sadguru muze Mahadev ke pass le gaye jo bahot bade mahadev the, unhone muze bola ki me unki 23 kalao ke sath unhka yani Shivji ka apne andar aawahan karu. Iska kya matlab hai? 23 kala kaise apne andar leke aau? Abhi me konse dimension me hu? Kya iske upar bhi chadhai hoti hai? Maine lok darshan thik se nhi kiye sadguru sidhe upar le gaye. Please guide me konse lok me hu aur 23 kalao ka kya karu?

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    1. Crown chakra ke baad kya kiya tha please bata na mera koi guru nhi lekin khud hi se crown chakra tak pahucha lekin crown chakra par dhyan karne ke bad mujhe easa laga ki mein apne dimaag mein hi band hu mujhe mere hath par kuch mehsus nhi ho rahe the swaas bhi rok chuki thi isliye mujhe laga kahi mein bina icha ke maar na jay isliye dhyaan bhag kar diya iske aage kya hota he bata na

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    2. Aap brain ke andar hai, jab aapke 3rd eye ke sare block clear ho jayenge tab aap pineal gland tak pahuch jayenge. Pineal se crown jane ke liye shaktiya aur sadguru help karti hai kyunki pineal se crown jane ke liye koi rasta nhi hai, rasta banaya jata hai, sadguru aur shaktiya rasta banati hai.. aapke sadguru agar physically present nhi hai to ruhani(soul)roop me help karte hai. Crown ke upar Hume kuchh nhi karna padta sadguru ki soul Hume leke jati hai aage. Aap bas abhi 3rd eye pe aur baad me crown pe dhyan kare. Dhyan ko band na kare kisi guru ka guidance le..

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  2. When i keep doing naam jaap and meditation for long time 40 day or more then suddenly in my house it comes big fights. Why this happens all the time?

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  3. Naad ki diksha kaha se ley

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  4. Mujhe dhyan karte waqt ek mahila ya devi dekhai deti h jo kamal par khadi hoti h aur lal vastra pehne hue hote he unke haath me bhi kamal hota h , kya mujhe iske baare me kuch bta skte he !?

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  5. NAMASTEY...MAIN DHYAAN OR JAAP KERTI HOON.FIXED TIME NAHI HAI ...MUJHEY KUCH DIN SE ANKHO K BEECH MAIN SENSATION HOTA HAI JAISEY CHASHMEY KA NO. BADHNEY PE HOTA HAI BUT YE DIN MAIN KAI BAAR HOTA HAI .OR DHYAN MAIN KAI BAR MUH SE LAAR NIKALTI HAI AISA KYU HOTA HAI ??

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  6. M ma kamla dus mahavidhya ki sadhna karti hu mera koi physical guru nai hai mene shivji ko guru mankar ye sadhna shuru ki th ..ab jab bh m pooja karti hu mere Reed ki haddi par thandi hawa ka bahaw mehsoos hota hai uspar chiti chal rai h aisa lagta hai mere baalo me chitiya chal rai h aisa lagta hai .. jab ye sadhna m khule asman ke niche karti hu to ullu aa jata hai aisa kya ho raha h mere sath ..kya mujhe ye tantra sadhna chalu rakhni chaiye or ye ullu ka bar bar aana kya dikhata h ..aajkal to mujhe bina pooja k bh sharir m kampan mehsoos hota h
    Kripya margdarshan de

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  7. Sir jab mai dhyan lagata hoon to mujhe agya chakra pe kabhi kabhi dhundhali si kuch manta dikhai dete hai aisa kyun?

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