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खाने के तुरंत बाद क्या करें ?
खाने के तुरंत बाद कुछ सरल और आरामदायक गतिविधियों की सलाह दी जाती है:
- वज्रासन: खाना खाने के तुरंत बाद वज्रासन लगाना सुरक्षित और लाभकारी होता है। यह एकमात्र ऐसा आसन है जिसे खाने के बाद किया जा सकता है। वज्रासन पाचन तंत्र को सक्रिय करता है और पाचन में मदद करता है।
- धीरे-धीरे टहलना: भोजन के बाद हल्के टहलने से पाचन प्रक्रिया तेज होती है और यह पेट की समस्याओं को कम करता है।
पद्मासन कब करें?
पद्मासन को भोजन करने के कम से कम 2-3 घंटे बाद करना चाहिए, ताकि आपका भोजन अच्छी तरह से पच जाए और आपका शरीर ध्यान के लिए तैयार हो।
1. पीला रंग:
- पीला रंग आमतौर पर मणिपुर चक्र (Solar Plexus Chakra) से जुड़ा होता है, जो आपके आत्मविश्वास, शक्ति, और आत्म-सम्मान का प्रतीक है। यह चक्र आपके पेट के क्षेत्र में स्थित होता है।
- ध्यान में पीला रंग दिखाई देने का मतलब हो सकता है कि आप अपनी आत्मशक्ति, इच्छा-शक्ति और व्यक्तिगत विकास पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। यह रंग आंतरिक स्थिरता और मानसिक स्पष्टता का भी प्रतीक है।
2. हरा रंग:
- हरा रंग आमतौर पर अनाहत चक्र (Heart Chakra) से जुड़ा होता है, जो प्रेम, करुणा, और संतुलन का प्रतीक है। यह चक्र आपके हृदय के क्षेत्र में स्थित होता है।
- ध्यान में हरा रंग दिखाई देना आपके जीवन में भावनात्मक संतुलन, प्रेम और शांति का संकेत हो सकता है। यह आपकी आत्मा और शरीर के बीच के संबंधों को भी मजबूत कर सकता है, और यह बताता है कि आप दूसरों के प्रति अधिक प्रेमपूर्ण और दयालु हो रहे हैं।
क्या करें:
- इन रंगों के अनुभव को सहजता से स्वीकार करें। इसका मतलब यह है कि आपके चक्र सक्रिय हो रहे हैं और आप अपने आध्यात्मिक विकास के रास्ते पर हैं।
- यदि आप इन चक्रों पर अधिक काम करना चाहते हैं, तो मणिपुर और अनाहत चक्र के लिए विशेष ध्यान और प्राणायाम तकनीकों का अभ्यास कर सकते हैं, जैसे कि मंत्र जाप और प्राणायाम।
Ans. प्रेगनेंसी के दौरान ध्यान रखना बहुत फायदेमंद हो सकता है, लेकिन कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है।
सकारात्मकता: ध्यान करने से मानसिक शांति और सकारात्मकता बढ़ती है, जो प्रेगनेंसी के दौरान बहुत महत्वपूर्ण है।
शारीरिक स्वास्थ्य: अगर आप ध्यान कर रहे हैं तो यह आपको शारीरिक और मानसिक रूप से संतुलित रख सकता है।
सुरक्षा: ध्यान के दौरान कोई भी शारीरिक गतिविधि, जैसे योग आसनों में सावधानी बरतें। कुछ आसनों से बचना बेहतर हो सकता है, खासकर पहले और तीसरे तिमाही में।
परामर्श: हमेशा अपने डॉक्टर से सलाह लें, खासकर अगर आपको कोई स्वास्थ्य समस्या है।
आंतरिक शांति: पूजा करने से मन में शांति और संतुलन की अनुभूति होती है, जिससे तनाव कम होता है।
धार्मिकता और आध्यात्मिकता: यह व्यक्ति को अपने धर्म और आध्यात्मिकता के करीब लाता है, जिससे आत्मा को सुकून मिलता है।
सकारात्मकता: पूजा करने से सकारात्मक ऊर्जा मिलती है, जो दिनभर की गतिविधियों में मददगार हो सकती है।
ध्यान और एकाग्रता: पूजा एक तरह का ध्यान भी है, जो एकाग्रता को बढ़ाता है और मानसिक स्पष्टता देता है।
समुदाय और एकता: सामूहिक पूजा से समाज और परिवार में एकता और सहयोग की भावना बढ़ती है।
आभार और प्रार्थना: पूजा के दौरान आभार व्यक्त करने से जीवन में सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित होता है।
कुण्डलिनी शक्ति जागृत होने के दौरान कुछ लोगों को असंतुलन या मानसिक परेशानियों का अनुभव हो सकता है, लेकिन यह जरूरी नहीं है कि हर किसी के साथ ऐसा हो।
असंतुलन: यदि कुण्डलिनी शक्ति बहुत तेजी से जागृत होती है और व्यक्ति की मानसिक या भावनात्मक स्थिति स्थिर नहीं है, तो यह चिंता, भ्रम या अन्य समस्याएँ उत्पन्न कर सकती है।
सतर्कता: कुण्डलिनी योग या ध्यान के अभ्यास करते समय यह जरूरी है कि व्यक्ति अनुभवी गुरु की मार्गदर्शन में रहे, ताकि वह सही दिशा में आगे बढ़ सके।
आध्यात्मिक अनुभव: कुछ लोगों को गहन आध्यात्मिक अनुभव होते हैं, जो असामान्य लग सकते हैं, लेकिन यह हमेशा नकारात्मक नहीं होते।
समय और धैर्य: कुण्डलिनी जागरण एक धीमी और संतुलित प्रक्रिया होनी चाहिए। धैर्य और नियमित अभ्यास से व्यक्ति अधिक सुरक्षित अनुभव कर सकता है।
निरंकार की प्राप्ति: कई आध्यात्मिक परंपराओं में ध्यान का मुख्य उद्देश्य निरंकार (बिना रूप के, निराकार) को समझना और अनुभव करना होता है। यह आत्मा और ब्रह्म के एकत्व का अनुभव कराने में मदद करता है।
आंतरिक शांति: ध्यान का एक प्रमुख उद्देश्य मानसिक शांति और स्थिरता प्राप्त करना है। यह तनाव कम करने, एकाग्रता बढ़ाने और आत्मज्ञान की ओर ले जाने में मदद करता है।
व्यक्तिगत विकास: ध्यान के माध्यम से व्यक्ति अपनी आंतरिक क्षमताओं को विकसित कर सकता है, जैसे कि सहानुभूति, करुणा और समझ।
निर्गुण और सगुण का अनुभव: कुछ शिक्षाएँ निरंकार के साथ-साथ सगुण (रूप वाले ईश्वर) की भक्ति को भी महत्व देती हैं। ध्यान के माध्यम से दोनों के बीच संतुलन बनाना संभव हो सकता है।
आध्यात्मिक सफर: ध्यान एक यात्रा है, जिसमें व्यक्ति अपने आप को और अपनी आत्मा को गहराई से जानने की कोशिश करता है। यह न केवल निरंकार को पाने की दिशा में बल्कि आत्म-साक्षात्कार की ओर भी ले जाता है।
प्रकाश का अनुभव: जब कुण्डलिनी जागृत होती है, तो कई लोग स्वच्छ और दिव्य प्रकाश का अनुभव करते हैं, जिसे आत्मा की शुद्धता का प्रतीक माना जाता है।
नील रंग: नील रंग अक्सर शांति और गहराई का प्रतीक होता है। यह ध्यान की गहरी अवस्था या शांति का अनुभव हो सकता है।
गोल्डन रंग: सोनेरी रंग का अनुभव आमतौर पर उच्च आध्यात्मिक स्थिति और दिव्यता का प्रतीक होता है। इसे आत्मिक जागरण और ऊर्जावान अनुभव से जोड़ा जा सकता है।
व्यक्तिगत भिन्नता: यह अनुभव हर व्यक्ति के लिए अलग हो सकते हैं। कुछ लोग इन रंगों और रूपों का अनुभव कर सकते हैं, जबकि दूसरों को अलग अनुभव हो सकता है।
मार्गदर्शन: ऐसे अनुभवों को समझने और संभालने के लिए मार्गदर्शक या गुरु का होना महत्वपूर्ण है, ताकि व्यक्ति अपने अनुभव को सही ढंग से समझ सके और संतुलित रह सके।
Date: 16-10-2024
Q. Pink colour without dhyan ke dikhai deta hai ?
पिंक रंग या अन्य रंगों का दिखाई देना निम्नलिखित कारणों से हो सकता है:
- आँखों की थकान: ज्यादा समय स्क्रीन के सामने बिताने से आँखों पर दबाव बन सकता है, जिससे हल्के रंग दिख सकते हैं।
- माइग्रेन या सिरदर्द: कुछ लोगों को सिरदर्द के दौरान चमकते हुए रंग या रोशनी दिखाई देती है।
- ध्यान और आंतरिक जागरूकता: अगर आप ध्यान करते हैं, तो यह संभव है कि आपकी आंतरिक ऊर्जा का प्रभाव हो, जिससे ये रंग दिखाई दे सकते हैं।
- दिमागी गतिविधि: नींद और जागने की स्थिति के बीच मस्तिष्क में कुछ अवचेतन क्रियाएं हो सकती हैं जो इन रंगों के दिखने का कारण बनती हैं।
64 जोगणियों की सवारी का अर्थ होता है इन देवियों का साधक पर नियंत्रण या उनके साथ एक प्रकार की ऊर्जा का जुड़ाव, जो साधक के जीवन में गहरे आध्यात्मिक अनुभव ला सकता है। इसे कुछ लोग जागृति या शक्ति की अनुभूति के रूप में देखते हैं, जहां साधक को 64 जोगणियों की उपस्थिति महसूस होती है।
64 जोगणियाँ कौन होती हैं?
64 जोगणियाँ (योगिनियाँ) तंत्र और शाक्त परंपरा में महत्वपूर्ण हैं। इनका वर्णन प्राचीन ग्रंथों और तांत्रिक साहित्य में मिलता है। ये देवी विभिन्न रूपों में होती हैं और विभिन्न शक्तियों का प्रतिनिधित्व करती हैं। तांत्रिक साधक इनके माध्यम से शक्ति और सिद्धियों की प्राप्ति करते हैं।
64 जोगणियों की सवारी कैसे आती है?
64 जोगणियों की सवारी साधक पर तब आती है जब वह गहन तांत्रिक साधना या देवी उपासना करता है। इसे साधक की साधना के उच्चतम स्तर पर माना जाता है, जहां वह 64 जोगणियों की शक्ति का अनुभव करता है। इसके लिए कुछ विशेष साधनाएँ और विधियां हैं:
- तांत्रिक साधना: साधक गहरे तांत्रिक अनुष्ठानों और मंत्रों का अभ्यास करता है। यह साधना आमतौर पर गुरु के मार्गदर्शन में की जाती है।
- देवी की उपासना: जोगणियों को प्रसन्न करने के लिए साधक विशेष देवी की उपासना करता है। यह पूजा दुर्गा, काली, या अन्य शक्तिशाली देवियों के रूप में की जा सकती है।
- मंत्र जाप: 64 जोगणियों से संबंधित विशेष मंत्रों का जाप साधक को उनकी कृपा और शक्ति प्राप्त करने में मदद करता है।
- तांत्रिक यज्ञ: तंत्र में कुछ यज्ञ और अनुष्ठान होते हैं, जो जोगणियों की कृपा प्राप्त करने के लिए किए जाते हैं।
- ध्यान और मानसिक स्थिति: साधक को ध्यान में एक उच्च मानसिक स्थिति प्राप्त करनी होती है, जहां वह अपने आप को 64 जोगणियों के प्रति समर्पित करता है।
64 जोगणियों की सवारी के संकेत
जब 64 जोगणियों की सवारी आती है, तो साधक निम्नलिखित अनुभव कर सकता है:
- अत्यधिक ऊर्जा: साधक के शरीर और मन में अत्यधिक ऊर्जा का प्रवाह होता है।
- अलौकिक अनुभव: साधक को अद्वितीय दृश्य या आवाजें महसूस हो सकती हैं, जैसे कि देवियों का दर्शन या उनकी उपस्थिति।
- कंपन या आघात: शारीरिक रूप से भी साधक को ऊर्जा का अनुभव कंपन या किसी प्रकार के आघात के रूप में हो सकता है।
- अनुभूत शक्तियाँ: साधक को विशेष शक्तियों या सिद्धियों का अनुभव हो सकता है, जैसे कि कोई कार्य करने में अकल्पनीय सफलता या किसी भविष्यवाणी की क्षमता।
64 जोगणियों की साधना में सावधानियाँ
64 जोगणियों की साधना बहुत ही शक्तिशाली और गंभीर साधना मानी जाती है, इसलिए इसे बिना उचित ज्ञान और गुरु के मार्गदर्शन के नहीं किया जाना चाहिए। साधना में लापरवाही या गलत विधियों का उपयोग साधक के लिए हानिकारक हो सकता है।
आम तौर पर खाने और ध्यान के बीच कम से कम 1-2 घंटे का अंतर रखना अच्छा माना जाता है ताकि पाचन प्रक्रिया थोड़ी पूरी हो जाए और शरीर आराम की स्थिति में आ सके। इससे ध्यान में भी बेहतर एकाग्रता और शांति मिलती है।
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Q. pranam guruji me urja aagya chakra se uper nhi ja rahi h . or pura din raat mere aagya chakra p jalan ho rahi h .phle mitha mitha sa dard hota tha .ab jalan ho rahi h . or meri gardan jakadi hui rahti h . m gardan ko free nhi guma raha hu . kuch smj nhi aa raha h krupa kar k margdarshan kre mera ?
Ans: आज्ञा चक्र (Third Eye Chakra) पर जलन और गर्दन में जकड़न होना ऊर्जा असंतुलन का संकेत हो सकता है। यह हो सकता है कि आपकी ऊर्जा इस चक्र पर अत्यधिक केंद्रित हो गई हो, जिससे वहाँ अत्यधिक सक्रियता या बाधा उत्पन्न हो रही हो। इसे संतुलित करने के लिए कुछ उपाय और सुझाव दिए जा रहे हैं:
1. ग्राउंडिंग (जमीनी संपर्क):
आज्ञा चक्र की ऊर्जा को संतुलित करने के लिए ग्राउंडिंग महत्वपूर्ण है। कभी-कभी उच्चतर चक्रों (जैसे कि आज्ञा चक्र) पर अत्यधिक ध्यान देने से शरीर और मन असंतुलित हो सकते हैं। इसलिए, आपको अपनी ऊर्जा को नीचे की ओर (मूलाधार चक्र) लाने की जरूरत हो सकती है। इसके लिए आप निम्नलिखित कर सकते हैं:
- मूलाधार चक्र ध्यान: कुछ समय के लिए अपने ध्यान को आज्ञा चक्र से हटाकर मूलाधार चक्र (Root Chakra) पर केंद्रित करें। इससे आपकी ऊर्जा संतुलित होगी और जमीनी संपर्क मजबूत होगा।
- प्रकृति से संपर्क: धरती पर नंगे पाँव चलना या प्रकृति के बीच समय बिताना आपकी ऊर्जा को संतुलित कर सकता है।
2. गर्दन और शरीर का स्ट्रेचिंग:
गर्दन की जकड़न को दूर करने के लिए आप नियमित रूप से गर्दन और कंधों की स्ट्रेचिंग कर सकते हैं। इससे आपकी मांसपेशियों की जकड़न दूर होगी और रक्त संचार बेहतर होगा। कुछ स्ट्रेचिंग अभ्यास जैसे:
- धीरे-धीरे सिर को एक ओर से दूसरी ओर घुमाना।
- गहरी साँस लेते हुए गर्दन की मांसपेशियों को रिलैक्स करना।
प्राणायाम भी बहुत मददगार हो सकता है, जैसे अनुलोम-विलोम और भ्रामरी प्राणायाम। इससे तनाव और जकड़न कम हो सकती है।
3. शीतलन तकनीकें (Cooling Techniques):
जलन को कम करने के लिए शीतलन ध्यान या शीतली प्राणायाम का अभ्यास करें:
- शीतली प्राणायाम: यह प्राणायाम शरीर में ठंडक लाता है और अत्यधिक ऊर्जा को शांत करता है। जीभ को नली की तरह बनाकर श्वास लें और फिर नाक से श्वास छोड़ें।
4. ऊर्जा संतुलन:
- ध्यान के दौरान आप अपने पूरे शरीर की ऊर्जा को संतुलित करने पर ध्यान दें। विशेष रूप से, मस्तक के चक्रों पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, ऊर्जा को पूरे शरीर में फैलाने का प्रयास करें।
- धीरे-धीरे क्राउन चक्र (सहस्त्रार) की ओर ऊर्जा बढ़ाने का अभ्यास करें, लेकिन पहले जमीनी संपर्क और ऊर्जा संतुलन पर ध्यान दें।
5. गुरु का मार्गदर्शन:
अगर यह जलन और असंतुलन लंबे समय तक बना रहता है, तो किसी अनुभवी साधक या गुरु से मार्गदर्शन लेना लाभकारी हो सकता है। वे आपकी ऊर्जा को सही दिशा में चैनलाइज करने में मदद कर सकते हैं।
6. हल्का भोजन और पानी:
आपकी ऊर्जा की तीव्रता को कम करने के लिए हल्का भोजन लें और पर्याप्त पानी पिएँ। अत्यधिक भारी या मसालेदार भोजन से जलन बढ़ सकती है।
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अंतर्मुखी प्रकृति: आध्यात्मिक साधक अक्सर अंतर्मुखी हो जाते हैं, और जब बाहरी दुनिया के साथ उनका तालमेल नहीं बैठता या लोग उनके दृष्टिकोण को नहीं समझते, तो उन्हें निराशा या गुस्सा महसूस हो सकता है।
अधूरी साधना: साधना के कुछ स्तरों पर, व्यक्ति अपनी भावनाओं पर पूर्ण नियंत्रण हासिल नहीं कर पाता। यह एक प्रक्रिया है, और साधक को अपने गुस्से और अन्य भावनाओं पर धीरे-धीरे काम करना होता है।
आंतरिक संघर्ष: जब आध्यात्मिक व्यक्ति आंतरिक रूप से किसी बदलाव या संघर्ष से गुजर रहा होता है, तो यह बाहरी रूप से गुस्से के रूप में प्रकट हो सकता है। यह स्वयं के साथ असंतुलन का संकेत हो सकता है, जो साधना के दौरान होता है।
गहरे स्तर पर समझ की कमी: जब व्यक्ति को लगता है कि दूसरे लोग उसकी गहरी आध्यात्मिक समझ को नहीं समझते या उसकी भावना का अनादर करते हैं, तो गुस्सा आ सकता है। यह आध्यात्मिक और सांसारिक दृष्टिकोण के बीच की असमानता से उत्पन्न हो सकता है।
2. आध्यात्मिक व्यक्ति को चुप रहना क्यों अच्छा लगता है?
आध्यात्मिक साधक अक्सर चुप रहने और आत्मनिरीक्षण करने में अधिक समय बिताना पसंद करते हैं। इसके कुछ कारण हो सकते हैं:
आंतरिक शांति की खोज: आध्यात्मिक यात्रा में, साधक बाहरी दुनिया से कटकर अपने भीतर की शांति और सच्चाई को अनुभव करना चाहता है। चुप्पी उसे अपने भीतर की गहराई में जाने और सच्चाई को समझने में मदद करती है।
बाहरी शोर से दूर रहना: आध्यात्मिक व्यक्ति को दुनिया का शोर-शराबा और हलचल भारी और व्यर्थ महसूस हो सकती है। वे अधिक सूक्ष्म और शांत वातावरण की तलाश करते हैं ताकि वे अपने ध्यान और साधना में स्थिरता पा सकें।
अनावश्यक बातों से बचाव: आध्यात्मिक व्यक्ति समझता है कि बहुत सी बातें अनावश्यक होती हैं और उनमें ऊर्जा व्यर्थ हो जाती है। इसलिए, वे केवल महत्वपूर्ण और अर्थपूर्ण संवाद की ओर आकर्षित होते हैं, और बिना कारण की बातें करने से बचते हैं।
3. किसी से बात करने का मन क्यों नहीं करता?
जब व्यक्ति आध्यात्मिक यात्रा पर होता है, तो उसकी प्राथमिकताएँ बदल जाती हैं। इस कारण से, कई बार उसका मन लोगों से संवाद करने या सामान्य सामाजिक गतिविधियों में भाग लेने का नहीं करता। इसके कुछ कारण हो सकते हैं:
आध्यात्मिक ध्येय: साधक का मन बाहरी लोगों और दुनिया से हटकर अपने आत्म-साक्षात्कार की ओर केंद्रित हो जाता है। इस स्थिति में, साधक को सांसारिक बातों में कम रुचि होती है।
ऊर्जा संरक्षण: आध्यात्मिक साधक को यह एहसास होता है कि बाहरी संवाद और बातचीत में ऊर्जा खर्च होती है। वे अपनी ऊर्जा को ध्यान, साधना, और आत्मिक विकास के लिए संचित रखना पसंद करते हैं।
आंतरिक संतोष: साधक को अपने भीतर ही आनंद और शांति मिलने लगती है, जिससे बाहरी रिश्तों या बातचीत की आवश्यकता महसूस नहीं होती। बाहरी दुनिया से दूरी उनके लिए स्वाभाविक हो जाती है।
गुस्से और चुप्पी से निपटने के उपाय:
आत्मनिरीक्षण: जब गुस्सा आए, तो स्वयं को समझने की कोशिश करें कि यह क्यों हो रहा है। इसे एक अवसर के रूप में देखें, जिससे आप अपनी भावनाओं पर बेहतर नियंत्रण पा सकते हैं।
प्राणायाम और ध्यान: गहरी सांस लेने की तकनीकें और ध्यान गुस्से को नियंत्रित करने और मानसिक शांति बनाए रखने में मदद करते हैं।
संयम और धैर्य: आध्यात्मिक व्यक्ति का मार्ग धैर्य और संयम से भरा होता है। दूसरों से दूरी बनाना स्वाभाविक हो सकता है, लेकिन संयम से काम लें और जब आवश्यक हो, तब संवाद करें।
आंतरिक और बाहरी संतुलन: साधना के दौरान खुद को पूरी तरह बाहरी दुनिया से अलग न करें। एक संतुलन बनाए रखें, जहां आप आंतरिक शांति और बाहरी संबंधों के बीच सामंजस्य स्थापित कर सकें।
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यदि बच्चा नहीं हो रहा है, तो आध्यात्मिक दृष्टिकोण से इसे प्रजनन प्रणाली और संबंधित ऊर्जा केंद्रों पर ध्यान केंद्रित करके ठीक किया जा सकता है। योग और चक्र ध्यान में इस समस्या से निपटने के लिए स्वाधिष्ठान चक्र और मूलाधार चक्र पर ध्यान केंद्रित करने की सलाह दी जाती है। इन दोनों चक्रों का प्रजनन क्षमता और यौन ऊर्जा से गहरा संबंध है।
1. स्वाधिष्ठान चक्र (Sacral Chakra):
- स्थान: यह चक्र नाभि के नीचे, जननांगों के पास स्थित होता है।
- संबंध: स्वाधिष्ठान चक्र हमारी रचनात्मकता, यौन ऊर्जा, और भावनात्मक संतुलन से जुड़ा होता है। प्रजनन क्षमता के लिए यह चक्र अत्यंत महत्वपूर्ण है।
- असंतुलन के लक्षण: अगर यह चक्र अवरुद्ध या असंतुलित हो जाता है, तो व्यक्ति को यौन समस्याएँ, प्रजनन क्षमता में कमी, या भावनात्मक अस्थिरता का सामना करना पड़ सकता है।
- ध्यान: इस चक्र पर ध्यान करते समय, आपको इस चक्र का संतुलन बनाए रखने के लिए सकारात्मक ऊर्जा और प्रजनन क्षमता की कल्पना करनी चाहिए। आप 'वाम' बीज मंत्र का जाप कर सकते हैं, जो इस चक्र को सक्रिय करने में सहायक है।
2. मूलाधार चक्र (Root Chakra):
- स्थान: यह चक्र रीढ़ के आधार पर, जननांगों और मलाशय के बीच स्थित होता है।
- संबंध: यह चक्र हमारी शारीरिक सुरक्षा, स्थिरता, और जीवन ऊर्जा से जुड़ा होता है। यह हमारी प्रजनन क्षमता के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- असंतुलन के लक्षण: अगर मूलाधार चक्र असंतुलित है, तो व्यक्ति को शारीरिक अस्वस्थता, भय, और जीवन में अस्थिरता महसूस हो सकती है। इससे प्रजनन क्षमता पर भी असर पड़ सकता है।
- ध्यान: मूलाधार चक्र को सक्रिय और संतुलित करने के लिए आप 'लम' बीज मंत्र का जाप कर सकते हैं। ध्यान के दौरान अपने शरीर की जड़ों की मजबूती और स्थिरता का अनुभव करें।
ध्यान और प्रजनन के लिए अन्य सुझाव:
- प्राणायाम (सांस की तकनीकें): गहरी सांस लेने की तकनीकें (प्राणायाम) जैसे अनुलोम-विलोम और भ्रामरी प्राणायाम, शरीर की ऊर्जा को संतुलित करती हैं और तनाव को कम करती हैं, जो प्रजनन क्षमता को प्रभावित कर सकता है।
- ध्यान में कल्पना: ध्यान के दौरान, अपनी प्रजनन प्रणाली को स्वस्थ और संतुलित रूप में देखने की कल्पना करें। जीवन और सृजन की ऊर्जा का आह्वान करें।
- आहार और जीवनशैली: योग और ध्यान के साथ-साथ, पोषक आहार और स्वस्थ जीवनशैली भी महत्वपूर्ण हैं। चक्रों पर ध्यान लगाने से पहले शरीर को साफ और स्वस्थ रखना आवश्यक है।
Q. wo jo tishri aakh jo na white na black dikhai deti he ushke bare me bataya hi nahi mujhe wo hi dikhai deta he our mere pass guru nahi he plz bataye
दाहिने कान में सुन आवाज आना क्या मतलब है??
Q.मुझे सोते वक्त फूलों की खुशबू आती है जो कभी मैने ली ही नहीं हो ! ऐसा क्यों होता है ?
Q.विनम्र नमन,कृपया मेरा मार्गदर्शन करें।
ध्यान में या किसी भी समय , कुछ पल के लिए मुझे लगता है जैसे तालू पर शीतल जल सा बह रहा है। ऐसा क्यो हो रहा है।
Q.Aakash ganga ka bare me bataiye
Q. Talve jab garm hote hai to body me BhI pasina ata hai Asa kyu ?
Q.Gyatri mantra ke mansik jaap me hone vale lakshan
Ans. गायत्री मंत्र के मानसिक जप के दौरान होने वाले लक्षणों में कई आध्यात्मिक और मानसिक परिवर्तन अनुभव किए जा सकते हैं। यह अनुभव हर व्यक्ति के लिए अलग हो सकते हैं, लेकिन कुछ सामान्य लक्षण इस प्रकार हैं: शांत और स्थिर मन: गायत्री मंत्र के मानसिक जप से मन धीरे-धीरे शांत और स्थिर होने लगता है। विचारों का बहाव कम होता है, और मन में शांति और स्थिरता का अनुभव होता है। सकारात्मक ऊर्जा का अनुभव: जप के दौरान और उसके बाद सकारात्मक ऊर्जा का अनुभव होता है। शरीर में ऊर्जा और उत्साह बढ़ता है, जिससे दिनभर के कामों में स्फूर्ति महसूस होती है। मन और शरीर का हल्का महसूस होना: गायत्री मंत्र जप से मन और शरीर में हल्कापन महसूस होने लगता है। इससे तनाव कम होता है, और शरीर में एक नई ताजगी महसूस होती है। चेतना का विस्तार: मानसिक जप से धीरे-धीरे चेतना का स्तर ऊँचा होता है। इससे आंतरिक शांति, आत्म-साक्षात्कार और आत्म-ज्ञान का अनुभव होने लगता है। विचारों की स्पष्टता: गायत्री मंत्र जप से मानसिक स्पष्टता और विचारों में स्थिरता आती है। निर्णय लेने की शक्ति बढ़ती है और सोच में सकारात्मकता का समावेश होता है। आत्मविश्वास और संकल्प शक्ति का विकास: जप से आत्मविश्वास और संकल्प शक्ति बढ़ती है, जिससे जीवन में किसी भी चुनौती का सामना करने की शक्ति मिलती है। आंतरिक ऊर्जा का जागरण: नियमित जप से शरीर की ऊर्जा केंद्र, जैसे चक्र, जागृत हो सकते हैं। इससे शरीर में कंपन, गर्मी, या ऊर्जा का संचरण महसूस हो सकता है। ध्यान की गहराई बढ़ना: गायत्री मंत्र जप ध्यान की गहराई को बढ़ाता है, जिससे लंबे समय तक ध्यान में रहना आसान हो जाता है। शारीरिक और मानसिक शांति: गायत्री मंत्र जप का प्रभाव शरीर और मन दोनों पर होता है। इससे नींद बेहतर होती है और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है। -----------------------------------------------------------------------------------------------------------Q.Parnam guru ji muje pooja ke samay gar ya mandir me kuch pal meri left aankh fadakti hai please aap yeah batay ki esha kyu hota hai thank you
Ans. पूजा के समय अगर आपकी बाईं आंख फड़कती है, तो इसे कई दृष्टिकोणों से देखा जा सकता है। धार्मिक, मानसिक और शारीरिक दृष्टिकोण से इसे समझने की कोशिश करते हैं: आध्यात्मिक दृष्टिकोण से: कई मान्यताओं के अनुसार, पूजा के दौरान बाईं आंख का फड़कना शुभ संकेत हो सकता है। माना जाता है कि जब हम पूजा करते हैं, तब सकारात्मक ऊर्जा हमारे आसपास सक्रिय हो जाती है, और ऐसी घटनाएँ किसी दिव्य उपस्थिति या आशीर्वाद का संकेत हो सकती हैं। कुछ परंपराओं में इसे ईश्वर या किसी दैवीय शक्ति का ध्यानाकर्षण माना जाता है। ध्यान में गहराई का संकेत: कई बार ध्यान और पूजा के दौरान हम एकाग्रता के गहरे स्तर में पहुँच जाते हैं। इस अवस्था में हमारी इंद्रियाँ संवेदनशील हो जाती हैं, और आंख का फड़कना हमारे तंत्रिका तंत्र की प्रतिक्रिया हो सकती है। यह ध्यान और पूजा की गहराई को दर्शाता है और हमारे ऊर्जा केंद्रों (चक्रों) के जागरण का लक्षण भी हो सकता है। -----------------------------------------------------------------------------------------------------------

जब आप 7 चक्र ध्यान करते हैं और बीज मंत्र का जाप करते हैं, तो यह संभव है कि आपकी भावनाएं और ऊर्जा स्तर सक्रिय होने लगें, जो कुछ समय के लिए असंतुलित महसूस करा सकता है। विशेष रूप से चक्र ध्यान में, प्रत्येक चक्र में संचित भावनाएं और अवरोध उभरने लगते हैं, और यह स्थिति सामान्य है।
कई बार, मूलाधार (Root Chakra) या मणिपुर (Solar Plexus Chakra) पर ध्यान केंद्रित करने से गुस्सा, भय, या असुरक्षा जैसी भावनाएं जागृत होती हैं, क्योंकि इन चक्रों में अक्सर हमारी नकारात्मक भावनाएं संचित रहती हैं। जब हम इन चक्रों को सक्रिय करते हैं, तो पुरानी भावनाएं ऊपर आकर अपनी मौजूदगी दर्ज करवाती हैं, जिससे अस्थायी रूप से गुस्सा या चिड़चिड़ाहट बढ़ सकती है।
इससे निपटने के लिए:
- सहनशीलता और स्वीकार्यता – इस अनुभव को स्वीकार करें और इसे एक शुद्धिकरण प्रक्रिया मानें।
- मूलाधार और स्वाधिष्ठान चक्र पर संतुलित ध्यान – विशेष रूप से मूलाधार चक्र के बीज मंत्र को धीरे-धीरे और शांतिपूर्वक जाप करने की कोशिश करें।
- सहज श्वास – ध्यान से पहले और बाद में गहरी सांस लें। इससे आपको शांति और स्थिरता मिलेगी।
ध्यान के दौरान बहते पानी की आवाज सुनाई देना, विशेष रूप से रात में, आपके भीतर के सूक्ष्म परिवर्तन और ऊर्जाओं की सक्रियता का संकेत हो सकता है। इस तरह की ध्वनियाँ साधकों को अक्सर तब सुनाई देती हैं, जब उनकी चेतना में गहराई से बदलाव हो रहा हो।
संभव कारण:
- सूक्ष्म ऊर्जा प्रवाह – यह बहते पानी की आवाज आपके शरीर में ऊर्जा का प्रवाह भी हो सकता है, जो अब आपकी चेतना के स्तर पर अधिक स्पष्टता से महसूस हो रहा है।
- अनाहत नाद (आंतरिक ध्वनि) – बहते पानी जैसी आवाज एक प्रकार का अनाहत नाद है, जो ध्यान की गहराई में स्वतः सुनाई देता है। इसे हमारे भीतर की आंतरिक ध्वनि या ऊर्जा के रूप में भी समझा जा सकता है।
- शुद्धिकरण की प्रक्रिया – यह ध्वनि आपके भीतर किसी गहरे अवरोध के शुद्धिकरण का भी संकेत हो सकती है, जैसे पुराने मानसिक और भावनात्मक अवरोध बह रहे हों।
क्या करें:
- स्वीकार्यता और शांति – इसे ध्यान के अनुभव का हिस्सा मानकर इसे स्वीकारें और गहराई से इसे सुनने का प्रयास करें। इसे शांतिपूर्वक अनुभव करें, बिना किसी भय या द्वंद्व के।
- श्वास पर ध्यान दें – यदि आप इसे सुनते वक्त अपने श्वास पर ध्यान केंद्रित करेंगी, तो यह आपको अधिक स्थिरता और स्पष्टता देगा।
सनातन परंपरा में अनहद नाद का विस्तार से वर्णन अनेक ग्रंथों में मिलता है। अनहद नाद को आंतरिक ध्वनि, दिव्य ध्वनि, या अनाहत नाद के रूप में भी जाना जाता है। इसके विषय में विस्तृत जानकारी देने वाले प्रमुख ग्रंथ निम्नलिखित हैं:
नाद बिंदु उपनिषद – यह उपनिषद विशेष रूप से नाद योग, अनाहत नाद, और ध्यान के द्वारा भीतर की ध्वनियों के अनुभव पर केंद्रित है। इसमें नाद को आत्म-साक्षात्कार का माध्यम माना गया है और इसका विस्तार से वर्णन किया गया है।
शिव संहिता – इस ग्रंथ में भी नाद योग का उल्लेख है, जिसमें ध्यान के माध्यम से आंतरिक ध्वनियों का अनुभव प्राप्त होता है। शिव संहिता में बताया गया है कि साधक को विभिन्न प्रकार की ध्वनियाँ सुनाई देती हैं जो आत्मज्ञान की ओर ले जाती हैं।
हठयोग प्रदीपिका – इस ग्रंथ में हठयोग और कुंडलिनी योग का विस्तृत वर्णन है। नाद योग को यहाँ साधक के भीतर की आंतरिक ध्वनि के रूप में समझाया गया है, जो साधना की उच्च अवस्थाओं में प्रकट होती है।
श्रीमद्भागवत महापुराण – इसमें भी ध्यान योग और आंतरिक ध्वनि (अनहद नाद) का उल्लेख मिलता है, जिसमें यह बताया गया है कि कैसे यह ध्वनि साधक को ईश्वर के करीब लाती है।
ज्ञानेश्वरी (भावार्थ दीपिका) – संत ज्ञानेश्वर द्वारा रचित इस मराठी ग्रंथ में गीता के श्लोकों का भावार्थ है, जिसमें अनाहत नाद और नाद योग का सुंदर वर्णन है। इसे आत्मिक उन्नति का साधन माना गया है।
विज्ञान भैरव तंत्र – इस तांत्रिक ग्रंथ में भगवान शिव और देवी पार्वती के संवाद के माध्यम से ध्यान की अनेक विधियों का वर्णन है, जिनमें अनहद नाद के ध्यान का भी उल्लेख है।
गुरु ग्रंथ साहिब – गुरु नानक देव और अन्य संतों ने अनहद नाद का उल्लेख करते हुए इसे "धुर की बाणी" और "शब्द" के रूप में वर्णित किया है। इसमें अनहद नाद के माध्यम से परमात्मा की अनुभूति के मार्ग की चर्चा की गई है।
संत साहित्य – संत कबीर, गुरु नानक, मीराबाई, तुलसीदास, और अन्य संतों ने अपने भजनों और पदों में अनहद नाद का उल्लेख किया है। उन्होंने इसे ईश्वर की दिव्य ध्वनि के रूप में वर्णित किया है जो साधना के माध्यम से सुनी जा सकती है।
त्रिबंध प्राणायाम, जिसमें तीन मुख्य बंधों (मूलबंध, उड्डीयान बंध और जालंधर बंध) का प्रयोग होता है, एक शक्तिशाली प्राणायाम है जो कुंडलिनी ऊर्जा को जागृत करने और सातों चक्रों को सक्रिय करने में सहायक हो सकता है। आइए इसे संक्षेप में समझते हैं:
त्रिबंध प्राणायाम का अभ्यास करते समय तीनों बंधों का संयोजन किया जाता है, जिससे शरीर में ऊर्जा को संचित और नियंत्रित किया जाता है। यह प्रक्रिया शरीर के निचले हिस्से से ऊर्जा को ऊपर की ओर खींचती है, जो कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने में सहायक हो सकती है।
मूलबंध – इसमें मूलाधार चक्र पर ध्यान केंद्रित किया जाता है और इसे संकुचित कर ऊर्जा को ऊपर की ओर खींचा जाता है। यह कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने की दिशा में पहला कदम है।
उड्डीयान बंध – इस बंध में पेट को भीतर की ओर खींचा जाता है, जिससे ऊर्जा मणिपुर चक्र (नाभि क्षेत्र) से होती हुई हृदय क्षेत्र की ओर प्रवाहित होती है। इससे चक्रों की ऊर्जा अधिक सक्रिय होती है।
जालंधर बंध – इसमें ठोड़ी को गले से लगाया जाता है, जिससे ऊर्जा का प्रवाह गले से होते हुए आज्ञा चक्र की ओर बढ़ता है। यह ऊर्जा के प्रवाह को ऊपर की ओर ले जाने में सहायक होता है।
क्या यह कुंडलिनी और सातों चक्रों को जागृत कर सकता है?
त्रिबंध प्राणायाम कुंडलिनी जागरण में सहायक तो है, लेकिन यह अकेले ही पर्याप्त नहीं है। कुंडलिनी जागरण एक गंभीर साधना है जिसमें संयम, सही मार्गदर्शन, और निरंतर अभ्यास की आवश्यकता होती है। इसके अलावा, सातों चक्रों की शुद्धि और संतुलन के लिए ध्यान और मंत्र जप का भी अभ्यास किया जाना चाहिए।
सावधानियाँ: कुंडलिनी शक्ति बहुत शक्तिशाली होती है, और त्रिबंध प्राणायाम का अभ्यास सही तरीके से और किसी अनुभवी गुरु के मार्गदर्शन में करना चाहिए।
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Comments
Me mere sadguru ke sath crown chakra ke upar ki chadhai karti hu. Mere sadguru muze lok darshan me fasne nhi dete, sidhe upar ki aur chadhai karte hai mera hath pakadkar. Mere sadguru muze Mahadev ke pass le gaye jo bahot bade mahadev the, unhone muze bola ki me unki 23 kalao ke sath unhka yani Shivji ka apne andar aawahan karu. Iska kya matlab hai? 23 kala kaise apne andar leke aau? Abhi me konse dimension me hu? Kya iske upar bhi chadhai hoti hai? Maine lok darshan thik se nhi kiye sadguru sidhe upar le gaye. Please guide me konse lok me hu aur 23 kalao ka kya karu?
ReplyDeleteCrown chakra ke baad kya kiya tha please bata na mera koi guru nhi lekin khud hi se crown chakra tak pahucha lekin crown chakra par dhyan karne ke bad mujhe easa laga ki mein apne dimaag mein hi band hu mujhe mere hath par kuch mehsus nhi ho rahe the swaas bhi rok chuki thi isliye mujhe laga kahi mein bina icha ke maar na jay isliye dhyaan bhag kar diya iske aage kya hota he bata na
DeleteAap brain ke andar hai, jab aapke 3rd eye ke sare block clear ho jayenge tab aap pineal gland tak pahuch jayenge. Pineal se crown jane ke liye shaktiya aur sadguru help karti hai kyunki pineal se crown jane ke liye koi rasta nhi hai, rasta banaya jata hai, sadguru aur shaktiya rasta banati hai.. aapke sadguru agar physically present nhi hai to ruhani(soul)roop me help karte hai. Crown ke upar Hume kuchh nhi karna padta sadguru ki soul Hume leke jati hai aage. Aap bas abhi 3rd eye pe aur baad me crown pe dhyan kare. Dhyan ko band na kare kisi guru ka guidance le..
DeleteWhen i keep doing naam jaap and meditation for long time 40 day or more then suddenly in my house it comes big fights. Why this happens all the time?
ReplyDeleteNaad ki diksha kaha se ley
ReplyDeleteMujhe dhyan karte waqt ek mahila ya devi dekhai deti h jo kamal par khadi hoti h aur lal vastra pehne hue hote he unke haath me bhi kamal hota h , kya mujhe iske baare me kuch bta skte he !?
ReplyDeleteNAMASTEY...MAIN DHYAAN OR JAAP KERTI HOON.FIXED TIME NAHI HAI ...MUJHEY KUCH DIN SE ANKHO K BEECH MAIN SENSATION HOTA HAI JAISEY CHASHMEY KA NO. BADHNEY PE HOTA HAI BUT YE DIN MAIN KAI BAAR HOTA HAI .OR DHYAN MAIN KAI BAR MUH SE LAAR NIKALTI HAI AISA KYU HOTA HAI ??
ReplyDeleteM ma kamla dus mahavidhya ki sadhna karti hu mera koi physical guru nai hai mene shivji ko guru mankar ye sadhna shuru ki th ..ab jab bh m pooja karti hu mere Reed ki haddi par thandi hawa ka bahaw mehsoos hota hai uspar chiti chal rai h aisa lagta hai mere baalo me chitiya chal rai h aisa lagta hai .. jab ye sadhna m khule asman ke niche karti hu to ullu aa jata hai aisa kya ho raha h mere sath ..kya mujhe ye tantra sadhna chalu rakhni chaiye or ye ullu ka bar bar aana kya dikhata h ..aajkal to mujhe bina pooja k bh sharir m kampan mehsoos hota h
ReplyDeleteKripya margdarshan de
Sir jab mai dhyan lagata hoon to mujhe agya chakra pe kabhi kabhi dhundhali si kuch manta dikhai dete hai aisa kyun?
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