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Showing posts from October, 2024

परमात्मा क्यों भेजता है आत्मा को संसार में?

 परमात्मा क्यों भेजता है आत्मा को संसार में?   यह प्रश्न युगों से ऋषियों, भक्तों और साधकों के हृदय में उठता आया है। इसका उत्तर केवल तर्क से नहीं, भावना और अनुभव से समझा जा सकता है। आइए इसे एक कहानी और भावना के माध्यम से समझते हैं... 🌌 प्रारंभ: परमात्मा और आत्मा का संवाद बहुत समय पहले की बात है। जब न कोई पृथ्वी थी, न आकाश। न समय था, न कोई देह। केवल एक था— परमात्मा । शुद्ध प्रेम, प्रकाश और शांति का अनंत महासागर। उस अनंत ज्योति के भीतर असंख्य आत्माएँ थीं—चमकती हुई चिंगारियाँ, जो उसी परमात्मा की ही अंश थीं। वे आत्माएँ आनंद में डूबी रहतीं, पूर्णता का अनुभव करतीं। फिर एक दिन, एक छोटी सी आत्मा ने परमात्मा से पूछा: "प्रभु, आप तो सब कुछ हैं। लेकिन मैं खुद को जानना चाहती हूं। मैं यह जानना चाहती हूं कि मैं कौन हूं। क्या मैं भी आप जैसी हूं?" परमात्मा मुस्कुराए। उन्होंने कहा: "प्यारी आत्मा, तुम वास्तव में मुझ जैसी ही हो। लेकिन केवल मेरे पास रहकर तुम अपने स्वरूप को पूर्ण रूप से अनुभव नहीं कर सकती। जैसे बिना अंधकार के प्रकाश का अनुभव नहीं होता, वैसे ही बिना अनुभव के ज्ञा...

ब्रह्म vs शिव || Crown Chakra

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अगर सहस्रार चक्र ब्रह्म की जगह है या यहां ब्रह्मरंधेर है या कुंडलिनी भी ब्रह्म के कमल तक जाती है तो फिर यहां शिव को क्यों बताया जाता है सहस्रार चक्र के बारे में जो बात आपने पूछी है, उसमें एक गहरी आध्यात्मिक और प्रतीकात्मक समझ है। सहस्रार चक्र को शास्त्रों में ब्रह्मरंध्र कहा गया है, और इसे ब्रह्मा, शिव, और अन्य दिव्य शक्तियों से भी जोड़ा गया है। इस संदर्भ में इन प्रतीकों और सिद्धांतों को समझने का प्रयास करते हैं: ब्रह्मा का प्रतीकात्मक अर्थ: ब्रह्मा को सृष्टि का निर्माता माना गया है। हमारे भीतर ब्रह्मा का प्रतीकात्मक स्थान इसलिए माना जाता है, क्योंकि सहस्रार चक्र में पहुँच कर साधक को सृष्टि की मूल ऊर्जा का अनुभव होता है। सहस्रार चक्र वह स्थान है जहाँ सृजन और जीवन की शुरुआत की समझ प्राप्त होती है। यहाँ पर ब्रह्मा का ध्यान इसलिए रखा गया है क्योंकि यह आत्मा और ब्रह्मांड की रचना की वास्तविकता की ओर संकेत करता है। शिव का स्थान: शिव को अध्यात्म में संहारक और शून्यता के प्रतीक के रूप में माना जाता है, जो हमारे अहंकार और माया का नाश करते हैं। सहस्रार चक्र, जिसे ‘हज़ार दल का कमल’ भी कहा जाता है...

क्या बीना ध्यान अवस्थ के भी शंख की आवाज सुनाई देती है एक दिन यूं ही बैठे बैठे मुझे शुंख की आवाज सुनाई दी और बहुत देर तक सुनाई देती रही बिना ध्यान के

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 क्या बीना ध्यान अवस्थ के भी शंख की आवाज सुनाई देती है एक दिन यूं ही बैठे बैठे मुझे शुंख की आवाज सुनाई दी और बहुत देर तक सुनाई देती रही बिना ध्यान के ? हाँ, कभी-कभी ध्यान के बिना भी ऐसे अनुभव हो सकते हैं। ऐसा तब होता है जब हमारी संवेदनशीलता बढ़ जाती है और हम सूक्ष्म ऊर्जा और ध्वनियों को सुनने लगते हैं, जो आमतौर पर सामान्य अवस्था में नहीं सुनाई देतीं। शंख की ध्वनि को विशेष रूप से आध्यात्मिकता में पवित्र और ऊर्जावान माना गया है; यह सकारात्मक ऊर्जा और शांति का प्रतीक है। ध्यान और साधना के दौरान हमारे शरीर और मन का कंपन बदलने लगता है, और ये ध्वनियाँ कभी-कभी सामान्य जीवन में भी प्रकट हो जाती हैं। यह संकेत हो सकता है कि आपकी साधना गहरी हो रही है, और आपके भीतर सूक्ष्म ध्वनियों को पहचानने की क्षमता विकसित हो रही है।

कुंडलिनी 7 चक्र को कैसे जागृत करें

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  कुंडलिनी 7 चक्र को कैसे जागृत करें कुंडलिनी जागरण और 7 चक्रों को जागृत करना एक गहन आध्यात्मिक साधना है, जिसे सावधानीपूर्वक और ध्यानपूर्वक किया जाना चाहिए। कुंडलिनी ऊर्जा एक सुप्त शक्ति मानी जाती है, जो मूलाधार चक्र (Root Chakra) में स्थित होती है और जब यह जागृत होती है, तो यह शरीर में स्थित सात प्रमुख चक्रों से होकर गुजरती है। इन चक्रों को जागृत करने के लिए कुछ प्रमुख विधियां हैं: 1. ध्यान (Meditation) साधना : ध्यान एक प्रमुख साधन है कुंडलिनी को जागृत करने का। इसके लिए प्रत्येक चक्र पर ध्यान केंद्रित करें। उदाहरण के लिए, मूलाधार चक्र पर ध्यान करते समय, अपनी पूरी चेतना वहां केंद्रित करें। चक्र ध्यान : प्रत्येक चक्र की शक्ति और गुणों को पहचानकर, ध्यान के माध्यम से जागृत करने की प्रक्रिया शुरू की जा सकती है। ध्यान में इन चक्रों की कल्पना करें और उनका रंग और तत्व महसूस करें। 2. प्राणायाम (Breathing Exercises) नाड़ी शोधन प्राणायाम : यह प्राणायाम आपके नाड़ी तंत्र (एनर्जी चैनल्स) को शुद्ध करता है, जिससे कुंडलिनी ऊर्जा के जागरण का मार्ग प्रशस्त होता है। धीरे-धीरे और संतुलित सांस लेने की ...

ब्रह्ममुहूर्त में उठे से आध्यात्मिक लाभ

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 ब्रह्ममुहूर्त में उठे से आध्यात्मिक लाभ ? ब्रह्ममुहूर्त का समय अत्यंत शांत और शुद्ध होता है। इस समय वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा और ब्रह्मांडीय शक्तियां सबसे अधिक सक्रिय रहती हैं, जिससे ध्यान और साधना अधिक प्रभावी होते हैं। ब्रह्ममुहूर्त में मन शांत और स्पष्ट होता है, क्योंकि इस समय बाहरी विक्षेप (distractions) बहुत कम होते हैं। इससे ध्यान लगाना आसान होता है, और व्यक्ति को गहन आत्म-साक्षात्कार की अनुभूति हो सकती है। ब्रह्ममुहूर्त में जागने से सत्त्व गुण (शुद्धता, शांति और संतुलन) की वृद्धि होती है। यह गुण मानसिक और आत्मिक शांति का आधार है और आत्म-जागृति की दिशा में सहायक होता है। नियमित रूप से ब्रह्ममुहूर्त में जागकर ध्यान और साधना करने से व्यक्ति की आध्यात्मिक यात्रा में गहराई आती है। इस समय ध्यान में प्रवेश करना अधिक आसान होता है, जिससे व्यक्ति को दिव्य अनुभवों की प्राप्ति हो सकती है। इस समय उठने से शरीर का बायोलॉजिकल क्लॉक (जैविक घड़ी) और प्राकृतिक चक्रों के साथ सामंजस्य बैठता है, जिससे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है। यह आत्मिक जागरण के लिए भी एक महत्वपूर्ण कारक ह...

अनहद नाद कैसे सुने

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अनहद नाद कैसे सुने अनहद नाद को सुनना एक गहरा आध्यात्मिक अनुभव है, जिसे योग और ध्यान की उन्नत अवस्था में अनुभव किया जाता है। अनहद नाद का अर्थ है "अनाहत ध्वनि" या "असीमित ध्वनि," जो बाहरी स्रोत से नहीं बल्कि भीतर से आती है। इसे आध्यात्मिक साधना में आंतरिक ध्वनि के रूप में अनुभव किया जाता है, जो आत्मा की गहराई से उत्पन्न होती है। अनहद नाद सुनने के लिए निम्नलिखित अभ्यासों का पालन कर सकते हैं: 1. ध्यान (Meditation) का अभ्यास: सुनने पर ध्यान केंद्रित करें: ध्यान के दौरान, बाहरी शोर से दूर, शांत स्थान पर बैठें। ध्यान केंद्रित करके अपने आंतरिक कानों से सुनने का प्रयास करें। यह ध्वनि शंख, घंटी, या मधुर संगीत की तरह हो सकती है। अपनी सांसों पर ध्यान केंद्रित करें और धीरे-धीरे मानसिक शांति प्राप्त करें। कुछ समय बाद आपको अंदर से एक सूक्ष्म ध्वनि सुनाई देने लगेगी। यह अनहद नाद हो सकता है। 2. नादानुसंधान (Nada Yoga): नाद योग एक ऐसी साधना है जो ध्वनि पर आधारित होती है। इसमें आंतरिक ध्वनि (अनाहत नाद) की सुनने पर ध्यान केंद्रित किया जाता है। इसके लिए पहले गहरी ध्यान अवस्था प्राप्त क...

तीसरी आंख खोलने का सबसे आसान तरीका

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तीसरी आंख खोलने का सबसे आसान तरीका तीसरी आंख (अजना चक्र) खोलने का सबसे आसान और सुरक्षित तरीका नियमित ध्यान, योग, और मानसिक जागरूकता के अभ्यास के साथ जुड़ा है। यहां कुछ सरल तरीके दिए गए हैं जो तीसरी आंख को खोलने और सक्रिय करने में मदद कर सकते हैं: 1. ध्यान (Meditation): अजना चक्र ध्यान: ध्यान करते समय अपने माथे के बीच (भौहों के बीच) पर ध्यान केंद्रित करें। इसे "त्रिकुटी" या "तीसरी आंख" का स्थान माना जाता है। आँखें बंद करके गहरी सांस लें और उस बिंदु पर ऊर्जा या हल्की सिहरन महसूस करने का प्रयास करें। यह ध्यान नियमित रूप से 10-15 मिनट करने से तीसरी आंख की जागरूकता बढ़ सकती है। 2. ओम मंत्र का जप: "ओम" ध्वनि का गहरा संबंध तीसरी आंख से होता है। नियमित रूप से ओम मंत्र का जप करने से अजना चक्र पर ध्यान केंद्रित किया जा सकता है। ओम मंत्र की गूँज आपके माथे के बीच कंपन पैदा करती है, जिससे तीसरी आंख जागृत होती है। 3. त्राटक ध्यान (Candle Gazing): किसी मोमबत्ती की लौ पर बिना पलक झपकाए ध्यान करें। लौ को एकाग्रता का केंद्र बनाएं। इससे आपकी मानसिक स्पष्टता और ध्यान केंद्रि...

10 द्वार कहा है और ये कैसे खुलता है

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10 द्वार कहा है और ये कैसे खुलता है "10 द्वार" (10 gates) का संदर्भ योग और अध्यात्म में शरीर के महत्वपूर्ण ऊर्जा केंद्रों से है। यह अवधारणा मुख्य रूप से कुंडलिनी योग और ध्यान में आती है। ये 10 द्वार शरीर के 9 बाहरी द्वार और 1 आंतरिक द्वार को दर्शाते हैं। 9 बाहरी द्वार: 2 आंखें 2 कान 2 नासिका छिद्र 1 मुख 2 उत्सर्जन द्वार (मूत्र मार्ग और गुदा) 10वां द्वार (दशम द्वार): यह शरीर का सबसे महत्वपूर्ण आंतरिक द्वार है जिसे "सहस्रार" या "ब्रह्मरंध्र" कहा जाता है, जो सिर के ऊपर स्थित होता है। इसे आध्यात्मिक रूप से जागरण और मुक्ति का द्वार माना जाता है। कैसे खुलता है: दशम द्वार के खुलने का तात्पर्य कुंडलिनी शक्ति के जागरण से है, जो मूलाधार (Root Chakra) से शुरू होती है और सहस्रार (Crown Chakra) तक पहुँचती है। यह द्वार साधना, ध्यान, और कुंडलिनी योग के माध्यम से खोला जा सकता है। जब कुंडलिनी जागृत होती है और सहस्रार तक पहुँचती है, तो व्यक्ति को ब्रह्मांडीय चेतना और परमात्मा से एकता का अनुभव होता है। इस अवस्था में मन, शरीर, और आत्मा का संयोजन होता है और व्यक्ति आध्यात्...

कुण्डलनी जागरण

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  कुण्डलनी जागरण  कुण्डलिनी शक्ति को जागृत करने के लिए साधक को नियमित और समर्पित साधना की आवश्यकता होती है। यह एक अत्यधिक शक्तिशाली और संवेदनशील प्रक्रिया होती है, जिसे उचित मार्गदर्शन के साथ करना महत्वपूर्ण है। यहां कुछ मुख्य विधियाँ और उपाय हैं जो कुण्डलिनी जागरण में सहायक हो सकते हैं: 1. यो ग और आसन: हठ योग: हठ योग के विभिन्न आसनों के माध्यम से शरीर में ऊर्जा का प्रवाह बढ़ता है और कुण्डलिनी जागृति के लिए शरीर तैयार होता है। विशेष रूप से सर्वांगासन , शशांकासन , भुजंगासन , और शवासन महत्वपूर्ण माने जाते हैं। मूलबंध और अश्विनी मुद्रा : मूलाधार चक्र को सक्रिय करने के लिए ये मुद्राएं सहायक होती हैं। 2. प्राणायाम : कपालभाति और अनुलोम-विलोम प्राणायाम ऊर्जा को संतुलित करने और नाड़ियों (इडा, पिंगला, और सुषुम्ना) को शुद्ध करने में मदद करते हैं। भस्त्रिका प्राणायाम : यह प्राणायाम भी कुण्डलिनी ऊर्जा को ऊपर उठाने में सहायक होता है। 3. ध्यान और ध्यान विधियाँ : मूलाधार चक्र ध्यान : मूलाधार चक्र पर ध्यान केंद्रित करें, जो शरीर के आधार में स्थित होता है। यह ध्यान कुण्डलिनी शक्ति को जागृत...