मुझे पहले माथे पर एनर्जी महसूस होती थी। वो एनर्जी धीरे धीरे ऊपर चढ़ते हुए अब रीढ़ पर पीछे की तरफ से नीचे उतरने लगी है। इसका क्या मतलब हो सकता है. ऊर्जा से मुकुट चक्र पर रुकनी चाहिए ना। पिचे से निचे क्यो उतर रही है। कृपया कारे समझाएं
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मुझे पहले माथे पर एनर्जी महसूस होती थी। वो एनर्जी धीरे धीरे ऊपर चढ़ते हुए अब रीढ़ पर पीछे की तरफ से नीचे उतरने लगी है। इसका क्या मतलब हो सकता है. ऊर्जा से मुकुट चक्र पर रुकनी चाहिए ना। पिचे से निचे क्यो उतर रही है। कृपया कारे समझाएं
Earlier I used to feel energy on my forehead. That energy, while slowly climbing up, has now started descending from the back side on the spine. What could this mean? The energy should stop at the crown chakra. Why are you descending from the pitch? please explain
जो अनुभव आप साझा कर रहे हैं, वह ऊर्जा (कुंडलिनी शक्ति) के प्रवाह से संबंधित हो सकता है। ध्यान और साधना के दौरान ऊर्जा का प्रवाह विभिन्न दिशाओं में हो सकता है, और यह पूरी तरह से सामान्य है। इसे समझने के लिए कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं पर ध्यान दें:
1. ऊर्जा का प्रवाह और चक्रों का संतुलन
- जब कुंडलिनी ऊर्जा जाग्रत होती है, तो वह मूलाधार चक्र (रीढ़ के निचले हिस्से) से शुरू होकर सहस्रार चक्र (मस्तक के ऊपर) तक जाती है।
- लेकिन यह यात्रा हमेशा सीधी और ऊपर की ओर नहीं होती। यह ऊर्जा शरीर में कहीं भी प्रवाहित हो सकती है, खासकर अगर किसी चक्र में असंतुलन या अवरोध हो।
- यदि ऊर्जा रीढ़ के पीछे की ओर से नीचे उतर रही है, तो यह संभव है कि शरीर किसी चक्र में अवरोध को संतुलित कर रहा हो।
2. रीढ़ में ऊर्जा का नीचे जाना
- संतुलन की आवश्यकता:
- ऊर्जा का नीचे की ओर बहाव इस बात का संकेत हो सकता है कि आपकी साधना कुछ चक्रों में अवरोध को हटाने या उन्हें संतुलित करने की प्रक्रिया में है।
- मूलाधार चक्र का शुद्धिकरण:
- मूलाधार चक्र जीवन की आधारभूत ऊर्जा से जुड़ा होता है। ऊर्जा के नीचे जाने का अर्थ यह हो सकता है कि आपकी कुंडलिनी शक्ति अभी मूलाधार चक्र को और अधिक जाग्रत या शुद्ध कर रही है।
- स्मरण रखें: ऊर्जा का प्रवाह हमेशा सीधा ऊपर की ओर ही नहीं होता; यह शरीर के विभिन्न भागों में अपनी आवश्यकता अनुसार घूम सकता है।
3. ऊर्जा नीचे क्यों जा रही है?
- शरीर का स्वाभाविक शुद्धिकरण:
- यह संभव है कि आपके शरीर की ऊर्जा प्रणाली अपने पुराने अवरोधों को हटाने या किसी विशेष क्षेत्र को मजबूत करने के लिए नीचे की ओर प्रवाहित हो रही है।
- चेतना का संतुलन:
- जब ऊर्जा सहस्रार तक पहुँचती है, तब भी वह नीचे लौट सकती है, क्योंकि यह पूरे शरीर और मन को संतुलित करना चाहती है।
- शरीर का तैयार होना:
- सहस्रार चक्र तक ऊर्जा तभी स्थिर होती है, जब शरीर और मन पूर्णतः तैयार हों।
4. क्या करें?
- ऊर्जा के प्रवाह को स्वीकारें:
- इसे रोकने या नियंत्रित करने की कोशिश न करें। यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है।
- ध्यान और श्वास पर ध्यान दें:
- नियमित रूप से श्वास के साथ ऊर्जा का अवलोकन करें। धीमी और गहरी श्वास ऊर्जा के प्रवाह को संतुलित करेगी।
- गुरु से मार्गदर्शन लें:
- यदि आप इस अनुभव से असमंजस में हैं, तो किसी गुरु या अनुभवी साधक से परामर्श करें।
- भौम तत्व पर ध्यान दें:
- यदि ऊर्जा अधिक नीचे जा रही है, तो धरती से जुड़ाव बढ़ाने के लिए भौम तत्व (मूलाधार चक्र) पर ध्यान दें।
- मंत्र: "ॐ लं।"
- शरीर का ध्यान रखें:
- पर्याप्त जल पिएं, सात्विक आहार लें, और शरीर को शारीरिक रूप से मजबूत बनाने के लिए योगासन करें।
5. महत्वपूर्ण बात
ऊर्जा का ऊपर-नीचे बहाव केवल चक्रों के शुद्धिकरण और संतुलन का संकेत है। यह साधना का एक स्वाभाविक हिस्सा है। इसे सहजता से स्वीकारें और चिंता न करें। जैसे-जैसे आपकी साधना गहरी होती जाएगी, यह ऊर्जा स्थिर और शांत होती जाएगी।
आप सही मार्ग पर हैं। श्रद्धा और धैर्य बनाए रखें।
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Comments
Thank you so much sir for your valuable response 🙏🙏🙏
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