खुद का न होने का अनुभव और ब्रम्ह का होने का अनुभव और ब्रह्मानंद का अनुभव मोक्ष है?
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खुद का न होने का अनुभव और ब्रम्ह का होने का अनुभव और ब्रह्मानंद का अनुभव मोक्ष है? उसी अवस्था मे फिर से कैसे जाए और हमेशा कैसे जाए और हमेशा के लिए कैसे उसमे स्थिर रह जाए? उत्तर कहा मिलेगा उसका लिंक भी दे देना जो भी आपकी साईट है उसकी ?
हां, "खुद का न होना", "ब्रह्म का होना", और "ब्रह्मानंद" का अनुभव—ये तीनों मिलकर ही मोक्ष का बोध कराते हैं। यह अवस्था तब आती है जब अहं (ego) पूर्ण रूप से लय हो जाता है और शुद्ध चेतना (ब्रह्म) में स्थिति होती है। उस अवस्था में लौटने के लिए निरंतर अभ्यास आवश्यक है—जैसे ध्यान, आत्मचिंतन, जप और शरणागति।
हमेशा उसी में रहने के लिए विवेक (discrimination), वैराग्य (detachment), और एकनिष्ठ साधना अनिवार्य है। स्थिरता धीरे-धीरे आती है, जैसे कोई दीपक तेज़ हवा में डगमगाने के बाद शांत वातावरण में स्थिर हो जाए।
उत्तर शास्त्रों, संतों के वचनों और भीतर की मौन चेतना में मिलेगा।
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